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Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश सरकार ने एक नई योजना की शुरुआत की है, जो राज्य के ग्रामीण इलाकों की रसोई और खेती दोनों में बड़ा बदलाव लाने वाली है। इस योजना का मकसद न सिर्फ किसानों को रसोई गैस का सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प देना है, बल्कि उन्हें खेतों के लिए जैविक खाद भी उपलब्ध कराना है। खास बात यह है कि इस पहल से आने वाले वक्त में गांवों में एलपीजी सिलेंडर की जरूरत काफी कम हो सकती है।
क्या है इस योजना की खास बात?
प्रदेश सरकार अब ग्रामीण क्षेत्रों में बायोगैस प्लांट लगाने की तैयारी कर रही है। शुरुआत गोशालाओं से हुई है, लेकिन सरकार की मंशा है कि यह योजना हर किसान के घर तक पहुंचे। इन बायोगैस यूनिट्स को खेतों या घरों के पास ही स्थापित किया जाएगा ताकि गांवों को किचन फ्यूल और ऑर्गेनिक खाद दोनों आसानी से मिल सके यानी एक समाधान दो फायदे।
एक अधिकारी ने बताया कि इस सिस्टम के शुरू होने से गांवों में एलपीजी की खपत में लगभग 70% तक की गिरावट संभव है। जहां पहले हर महीने सिलेंडर भरवाने में खर्च होता था, वहीं अब उसी खर्च में गैस के साथ-साथ खेतों के लिए खाद भी तैयार होगी।
आत्मनिर्भर गांवों की ओर कदम
इस योजना का व्यापक उद्देश्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्र ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनें। चूंकि बायोगैस उत्पादन का स्रोत गोबर और कृषि अपशिष्ट होता है, ऐसे में इससे प्रदूषण भी कम होगा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना ऊर्जा प्राप्त की जा सकेगी।
बायोगैस यूनिट्स से मिलने वाली खाद के चलते रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता भी घटेगी। इससे खेती की लागत में भी कमी आएगी और किसान ज्यादा लाभ कमा सकेंगे।
एलपीजी को पूरी तरह बदल पाएगी ये व्यवस्था?
फिलहाल ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि एलपीजी सिलेंडर पूरी तरह खत्म हो जाएंगे। लेकिन सरकार की योजना अगर सही दिशा में आगे बढ़ी, तो निश्चित रूप से बड़ी संख्या में ग्रामीण परिवारों का सिलेंडर पर खर्च कम हो जाएगा। आने वाले वक्त में बायोगैस एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर सकती है, खासकर उन इलाकों में जहां अब भी ऊर्जा के पारंपरिक विकल्प सीमित हैं।
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