
Up Kiran, Digital Desk: आज बड़ी संख्या में महिलाएँ समाज के हर क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यबल का हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें काम और जीवन के बीच संतुलन बनाने, सामाजिक अपेक्षाओं और कार्यस्थल पर मौजूद दबावों के कारण अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि कई महिलाएँ इस बढ़ते बोझ के कारण अपने 'ब्रेकिंग पॉइंट' यानी टूटने की कगार पर पहुँच रही हैं।
कार्यबल में महिलाओं की स्थिति अक्सर घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारियों से जटिल हो जाती है। उनसे अक्सर यह उम्मीद की जाती है कि वे अपने पेशेवर कर्तव्यों के साथ-साथ घर और परिवार की देखभाल की पारंपरिक भूमिकाएं भी बखूबी निभाएं। सहायक ढाँचे की कमी - चाहे वह परिवार से हो या कार्यस्थल पर लचीली नीतियों के रूप में - इस दबाव को और बढ़ा देती है।
इस निरंतर तनाव और दबाव का परिणाम मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बर्नआउट (Burnout), चिंता और तनाव महिलाओं के बीच आम हो रहा है। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत कल्याण को प्रभावित करती है, बल्कि कई प्रतिभाशाली महिलाओं को अपने करियर से ब्रेक लेने या पूरी तरह से कार्यबल से बाहर निकलने पर मजबूर कर रही है। यह प्रतिभा का एक महत्वपूर्ण नुकसान है, जो न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि अर्थव्यवस्था और समाज के लिए भी हानिकारक है।
लेख यह रेखांकित करता है कि कार्यबल में महिलाओं की उपस्थिति और उनका योगदान किसी भी प्रगतिशील समाज के लिए महत्वपूर्ण है। उनकी भागीदारी आर्थिक विकास को गति देती है, विविधता लाती है और भावी पीढ़ियों के लिए रोल मॉडल तैयार करती है। इसलिए, कार्यबल में महिलाओं के सामने आ रही चुनौतियों को समझना और उन्हें दूर करने के लिए ठोस कदम उठाना समय की मांग है।
यह समस्या केवल व्यक्तिगत स्तर की नहीं है, बल्कि इसके लिए कार्यस्थल संस्कृति, सामाजिक दृष्टिकोण और सरकारी नीतियों में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है। जब तक सहायक और समावेशी माहौल नहीं बनाया जाता, कार्यबल में महिलाओं का यह 'ब्रेकिंग पॉइंट' तक पहुंचना जारी रह सकता है।
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