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धर्म डेस्क। सनातन परंपरा में गुरु का महत्व भगवान् से भी अधिक माना गया है। गुरु पूर्णिमा के दिन सनातनी अपने गुरु की विधिवत पूजा कर उन्हें दक्षिणा आदि देते हैं। गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा पाठ और व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि आती है। परिवार के सदस्यों में सद्बुद्धि आती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा तिथि 20 जुलाई को शाम में 6 बजे से शुरू होगी और 21 जुलाई को दोपहर 3 बजकर 47 मिनट पर इसका समापन होगा। शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा का व्रत चंद्रोदय व्यापिनी पूर्णिमा तिथि को ही पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। जिस दिन रात के समय पूर्णिमा तिथि रहती है, उसी दौरान व्रत और पूजन किया जाता है। इसलिए इस बार 20 जुलाई को पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा और 21 तारीख को गुरु की पूजा और दान पुण्य कार्य किया जाएगा।

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा की जाती है। इसलिए इस व्रत में अनुशासन का विशेष महत्व है। गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर पूजा घर की अच्छे से साफ सफाई कर स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और वेद व्यास जी की प्रतिमा स्थापित करके उनको तिलक कर व्रत का संकल्प लेना उत्तम माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करने से पहले उनका पंचामृत से अभिषेक कर उन्हें वस्त्र अर्पित करना चाहिए। भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी और वेद व्यास जी का पूजन भी करें और गुरु चालीसा का पाठ करें। इसके बाद भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और वेद व्यास जी को मिष्ठान, फल और खीर आदि का भोग लगाएं और गुरु पूर्णिमा व्रत कथा का पाठ करें। इसके बाद भगवान सत्यनारायण की आरती करना विशेष शुभ माना गया है।

सनातन परंपरा के अनुसार गुरु पूर्णिमा का पर्व महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता अनुसार इसी दिन वेद व्यास जी ने चारों वेदों की रचना की थी। गुरु पूर्णिमा के दिन ही गुरु अपने शिष्यों को दीक्षा भी देते हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा का दिन विशेष महत्व रखता है। 

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