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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड में सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी कांग्रेस को अंदरूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लिए अपनी कमजोर होती पकड़ को बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर, नए और उभरते नेताओं की टीम भी जमीन पर मजबूती नहीं जमा पाई है। इसी दोहरी चुनौती के साथ कांग्रेस को 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी करनी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं की छाया के कारण दूसरी कतार के नेता उभर नहीं पा रहे हैं। इसके अलावा, लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने के कारण नए नेताओं में भी नेतृत्व संभालने का उत्साह नहीं दिखता। विधानसभा, लोकसभा और निकाय चुनावों में लगातार मिली हार ने कांग्रेस को सत्ता में लौटने की बेचैनी तो दी है, लेकिन सक्रिय नेतृत्व की कमी अब भी बरकरार है।
विशेषज्ञों के अनुसार, आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर अपने पुराने चेहरों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। पिछले आठ वर्षों में कोई नया, जनप्रिय और प्रभावशाली युवा नेता पार्टी से नहीं उभरा है। जिन युवाओं को पार्टी मंच पर आगे लाया गया, वे अधिकांशतः वंशवाद की परंपरा से जुड़े हुए हैं।
एनएसयूआई और युवा कांग्रेस जैसी इकाइयां जो कभी कांग्रेस के लिए नेतृत्व तैयार करती थीं, अब निष्क्रिय हो चुकी हैं। उनमें न तो पहले जैसा जोश बचा है और न ही नेतृत्व की क्षमता। जानकारों का कहना है कि जब तक पार्टी संगठनात्मक रूप से खुद को सशक्त नहीं बनाती, तब तक उसे चुनावों में सिर्फ संघर्ष ही करना होगा।
हालांकि, यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस में कद्दावर नेताओं की कमी नहीं है। पार्टी का ढांचा ऐसा है जहां वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ जमीनी कार्यकर्ताओं को भी बराबर महत्व दिया जाता है। यहां तक कि भाजपा भी कई बार कांग्रेस के पूर्व नेताओं के सहारे शासन चला रही है। भाजपा द्वारा कांग्रेस नेताओं को दबाव में लाकर तोड़ने की कोशिशें भी जारी हैं, लेकिन कांग्रेस में आज भी मजबूत और प्रभावशाली नेता मौजूद हैं।
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