img

भारतीय सिनेमा में जब पहली बार आवाज़ गूंजी, तब उस आवाज़ के पीछे थीं ज़ुबैदा। वह सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक क्रांतिकारी सोच की प्रतीक थीं, जिन्होंने समाज की परंपराओं और पाबंदियों को चुनौती दी।

ज़ुबैदा का जन्म एक ऐसे समय में हुआ जब पर्दा प्रथा और महिलाओं पर अनेक सामाजिक बंदिशें लागू थीं। उस दौर में फिल्मों में काम करना महिलाओं के लिए अच्छा नहीं माना जाता था। लेकिन ज़ुबैदा ने न केवल फिल्मों में अभिनय किया, बल्कि 1931 में आई भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' की मुख्य अभिनेत्री बनकर इतिहास रच दिया।

उन्होंने समाज की उन रूढ़ियों को चुनौती दी जिनमें महिलाओं को घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया था। ज़ुबैदा ने अपने अभिनय से यह साबित कर दिया कि औरतें भी कला, संस्कृति और नेतृत्व के क्षेत्र में अग्रणी हो सकती हैं।

ज़ुबैदा की कहानी सिर्फ एक अभिनेत्री की नहीं है, बल्कि वह उन हजारों महिलाओं की प्रेरणा हैं जो अपने सपनों के लिए समाज से लड़ती हैं। उनका सफर आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हर कदम पर हिम्मत दिखाई।

उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि बदलाव लाने के लिए सिर्फ एक आवाज़ ही काफी होती है – और ज़ुबैदा वह पहली आवाज़ थीं जिसने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी।

आज जब हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो ज़ुबैदा का नाम सम्मान से लिया जाना चाहिए। उन्होंने वह राह दिखाई जो आगे चलकर कई अभिनेत्रियों के लिए प्रेरणा बनी।

--Advertisement--