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इजराइल और हमास के मध्य चल रही जंग ने दुनिया को दो हिस्सों में तब्दील कर दिया है। कई रिपोर्ट्स जहां एक तरफ यह दावा करती है कि गाजा में हमले के बाद से मुस्लिम मुल्क एक्ट्ठा हो गए हैं तो वहीं दूसरी तरफ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश एक पाले में नजर आए। इजराइल और हमास की इस जंग का अगर कोई मुल्क फायदा उठा रहा है तो वह है रूस और चीन।

पहले तो चीन और रूस ने संतुलन की नीति अपनाते हुए हमास के हमले की निंदा की। फिर इजराइल के सैन्य कार्रवाई की भी आलोचना कर रहे हैं और उससे पीछे हटने की अपील कर रहे हैं। इस वॉर के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल तक में इजराइल की सेना को पीछे धकेलने के लिए प्रस्ताव आ चुके हैं, जिसका रूस और चीन ने साथ दिया है।

इजराइल के विरूद्ध UN में 4 प्रस्ताव आ चुके हैं, जो अमेरिकी वीटो के चलते खारिज हुए हैं। वहीं चीन और रूस एक ही पाले में खड़े दिख रहे हैं। इन प्रस्तावों में इजराइल की निंदा की गई है, जबकि अमेरिका ने ये कहकर वीटो लगाया है कि इसमें इजराइल के सेल्फ डिफेंस के अधिकार का तो जिक्र ही नहीं है।

यही नहीं हमास के प्रतिनिधिमंडल ने तो रूस का दौरा तक किया है। रिपोर्ट के मुताबिक वहां पर बंधकों को रिहा करने और सीजफायर की संभावनाओं पर बात हुई थी। चीन और रूस दोनों ने ही बीते कुछ दशकों में इजराइल के साथ संबंध मजबूत किए थे। चीन ने तो बड़े पैमाने पर इजराइल में निवेश भी किया है। वहीं इजराइल ने सीरिया में छिड़े गृह युद्ध के दौरान रूस की मदद की थी, जिसका रूस कर्जदार है। लेकिन दोनों देशों के लिए अरब देशों को नजरअंदाज करना भी आसान नहीं है।

अरब मुल्क चिंतित

अरब मुल्क इजराइल के सैन्य हमलों से चिंतित हैं। गुस्सा यहां तक है कि इजराइल से दोस्ती करने वाले यूएई और सऊदी अरब तक ने फिलहाल उससे दूरी बना ली है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस रणनीति के पीछे वजह यह है कि अमेरिका के ध्रुव वाले वर्ल्ड ऑर्डर को वैकल्पिक व्यवस्था के साथ चुनौती दी जा सके। इसी के तहत चीन अरब देशों को साथ लेना चाहता है, जबकि यूक्रेन युद्ध के बाद अकेला पड़ा। रूस इस मौके को दुनिया के एक हिस्से को साथ लेने के मौके के तौर पर देख रहा है।

UN में भी इजराइल के विरूद्ध शनिवार को जो प्रस्ताव आया था, उसमें 145 वोट पक्ष में पड़े अमेरिका समेत महज सात वोट विरूद्ध थे और 18 देश गैरहाजिर रहे। इससे साफ था कि ग्लोबल साउथ अरब देश, साउथ अमेरिका और यूरोप के बड़े हिस्से समेत तमाम देश इजराइल के विरोध में खड़े दिखे। ऐसे में चीन और रूस अमेरिका को इस मसले पर अलग दिखा कर बड़े पैमाने पर दुनिया में गोलबंदी का हिस्सा बनना चाहते हैं। यही दोनों की स्मार्ट स्ट्रैटेजी भी बताई जा रही है। 

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