_1376575966.png)
Up Kiran, Digital Desk: बिहार की सियासत में जहां एक ओर गठबंधनों की जोड़तोड़ शुरू हो गई है, वहीं दूसरी तरफ पुराने आरोप-प्रत्यारोप एक बार फिर गर्माए हुए हैं। इस बार मामला सिर्फ राजनीतिक आरोपों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि जनता के नाम पर राजनीतिक जमीन को लेकर असली जमीन पर कब्जे की बात हो रही है।
जमीन पर सियासत या सियासत पर जमीन?
जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने फुलवारीशरीफ में एक सभा के दौरान ऐसी टिप्पणी कर दी, जिसने चुनाव से पहले राजद बनाम जदयू की लड़ाई को फिर से हवा दे दी। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिए कि यदि राज्य में अगली सरकार एनडीए की बनती है, तो लालू प्रसाद यादव की फुलवारीशरीफ स्थित छह एकड़ जमीन को जब्त कर उसे भूमिहीनों के लिए आवासीय योजना में बदला जाएगा।
इस बयान का असर सिर्फ मंच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह गरीबों के हक और सियासत में पारदर्शिता को लेकर गहराते सवालों में तब्दील हो गया है।
‘गरीबों के नाम पर राजनीति, फायदा सिर्फ अपनों को?’
नीरज कुमार ने राजद सुप्रीमो पर तंज कसते हुए कहा कि लालू यादव का मकसद कभी जनसेवा नहीं रहा, बल्कि उन्होंने सत्ता का इस्तेमाल निजी संपत्ति बनाने के लिए किया। 2004 से 2009 के बीच कथित "नौकरी के बदले जमीन" प्रकरण को उन्होंने खासतौर से निशाने पर लिया और दावा किया कि अब वक्त आ गया है कि जिनके नाम पर राजनीति हुई, उनके जीवन स्तर में वास्तविक बदलाव लाया जाए।
राजद का तीखा पलटवार – “राजनीतिक स्टंट”
जैसे ही यह बयान सामने आया, राजद की ओर से प्रतिक्रिया भी तीव्र रही। पार्टी प्रवक्ता चितरंजन गगन ने इसे एक "चुनावी ड्रामा" बताते हुए कहा कि 2025 में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार बनेगी और तब मौजूदा सरकार की ‘वास्तविक भ्रष्टाचार’ की परतें खुलेंगी। उन्होंने केंद्र की एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि चुनावी समय में लालू परिवार को टारगेट करना एक सुनियोजित रणनीति है।
ED की जांच और सार्वजनिक धारणा का टकराव
बता दें कि जमीन के बदले नौकरी का मामला पहले से ही जांच एजेंसियों की निगरानी में है। ईडी अब तक लालू परिवार के कई सदस्यों से पूछताछ कर चुकी है, जिनमें राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप और मीसा भारती शामिल हैं। आरोप है कि रेल मंत्री के कार्यकाल में सरकारी नौकरियों के बदले लालू यादव के परिवार को रियायती दरों पर ज़मीन दी गई।
--Advertisement--