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हिन्दू पंचाग के अनुसार अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) व्रत भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है। इस साल अनंत चतुर्दशी 9 सितंबर दिन शुक्रवार को पड़ रही है। इस दिन को अनंत चौदस भी कहते हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस व्रत के प्रभाव से जातक को अनंत शुभ फल प्राप्त होते हैं । अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन का आखिरी दिन होता है । धार्मिक मान्यता है कि 14 साल तक लगातार अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

पांडवों ने भी रखा था यह उपवास

शास्त्रों में बताया गया है कि जब पांडव जुए में अपना राज्य हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) व्रत करने की सलाह दी थी। कृष्ण की सलाह मनाकर पांडवों ने अपने वनवास काल में हर साल इस व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से पांडव को महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि सत्‍यवादी राजा हरिशचंद्र को भी इसी व्रत के प्रभाव से अपना राज्य वापस मिला था।

ये है व्रत कथा

कहते यहीं कि प्राचीन काल में सुमंत नाम के एक तपस्वी ब्राह्मण थे। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। दोनों की एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी, जिसका नाम सुशीला था। सुशीला बड़ी हो रही थी तभी उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी की मृत्यु के बाद सुमंत ने कर्कशा नाम की स्त्री से दूसरा विवाह रचा लिया और सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। सुशीला की विदाई के समय कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए। कौंडिन्य ऋषि अपनी पत्नी सुशीला को लेकर अपने आश्रम की तरफ निकल पड़े। रास्त में ही शाम ढलने लग गई। इस पर ऋषि कौंडिन्य नदी के किनारे संध्या वंदन करने लगेतभी सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा-अर्चना कर रही थीं।

सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वह दुखी रहने लगे

सुशीला ने महिलाओं से पूछा कि वे किसकी प्रार्थना कर रही हैं, इस पर महिलाओं ने सुशीला को भगवान अनंत (Anant Chaturdashi) की पूजा करने और इस दिन उनका व्रत रखने के महत्व के बारे में बताया। व्रत के महत्व को जानकर सुशीला ने भी वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई। कौंडिन्य ने सुशीला से जब डोरे के बारे में पूछा तो उन्होंने सारी बात बता दी। कहते हैं कौंडिन्य ने यह सब कुछ मानने से मना कर दिया और पवित्र धागे को निकालकर अग्नि में डाल दिया। इसके बाद उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वह दुखी रहने लगे।

अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात

इस दरिद्रता का कारण जब उन्होंने अपनी पत्नी सुशीला से पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कही। पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले, “हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। 14 वर्षों तक व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।”(Anant Chaturdashi)

श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का 14 वर्षों तक विधिपूर्वक व्रत किया और इसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए व चिरकाल तक राज्य करते रहे। इसके बाद ही अनंत चतुर्दशी का व्रत प्रचलन में आया।(Anant Chaturdashi)

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