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5 सितंबर को खेले गए श्रीलंका के विरूद्ध मैच में एशिया कप सुपर फोर अफगानिस्तान के लिए उसी मंजिल की तरह था जहां तक पहुँचने के दो रास्ते थे। पहला तो ये उसे मालूम था पर दूसरा रास्ता भी था। इससे वो अनजान था। हाल ये हुआ कि उसे इसकी कीमत टूर्नामेंट से बाहर होकर चुकानी पड़ी। अफगानिस्तान का खेल ग्रुप स्टेज पर ही खत्म हो गया और साथ में एक अफसोस भी रह गया कि जो पहला फेल हुआ तो उसने दूसरा रास्ता क्यों नहीं अपनाया।

अब अगर एशिया कप के सुपर फोर का टिकट चाहिए था तो पहला रास्ता ये था कि उसे इस लक्ष्य को 38 ओवर में हासिल करे। ये वो रास्ता था जो अफगानिस्तान को पता था। यही वजह थी कि जब 38 ओवर तक जाकर अफगानिस्तान की रनों की गाड़ी 289 रन पर ही थम गई तो उसने खुद को सुपर फोर की रेस में बाहर मान लिया। बैटिंग में सबकुछ कुछ वाले राशिद खान अपनी कोशिशों को नाकाम हुआ देख घुटने के बल बैठ गए। मगर हकीकत तो ये है कि अफगानिस्तान अभी बाहर नहीं हुआ था। उसके पास एक दूसरा रास्ता भी था और वो इससे अनजान था। दरअसल इसकी कीमत उसे चुकानी पड़ी।

श्रीलंका से बेहतर रनरेट के लिए पहले तो उसे जीत के लक्ष्य यानी 292 रन को उसे 37.1 ओवर में हासिल करना था। लेकिन जब ऐसा नहीं हो सका तो दूसरा तरीका श्रीलंका से बेहतर रन रेट करने का था कि वो 37 के बाद उसका स्कोर 293 रन हो। 37 ओवर के बाद 294 रन, 37.5 ओवर के बाद 295 रन और 38वें ओवर के बाद 296 रन या फिर 38 ओवर तक 297 रन।

मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में अफगानिस्तान टीम के हेड कोच जोनाथन ट्रॉट ने कहा कि ऑफिशियल्स ने हमें सुपर फोर क्वालीफिकेशन के सारे समीकरण नहीं बताए थे। हमें सुपर फोर के कैलकुलेशन के बारे में बताया नहीं गया था। हमें सुपर फोर के लिए क्वालिफाई करने के लिए 38 ओवर में मैच जीतना है। ये नहीं बताया गया था कि वो कौन से है ओवर हैं जिसमें हम 295 297 रन बना सकते हैं। इसमें भी हम क्वालिफाई कर सकते थे। इस बारे में भी किसी ने कुछ जानकारी नहीं दी थी। 

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