उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा इलेक्शन की तारीखें धीरे धीरे नजदीक आ रही हैं। तो वहीं 1 बरस से अधिक समय तक चले अन्नदाताओं के आंदोलन के पश्चात ये बताया जा रहा था कि अबकी बार बीजेपी वेस्ट उप्र में कई समस्याओं का सामने करना पड़ेगा। बताया गया कि सन् 2013 में मुजफ्फरनगर हिंसा के उपरांत मुसलमानों व जाट के मध्य दरार उतपन्न हुई थी, वो किसानों के विरोध प्रदर्शन ने समाप्त कर दी।
ऐसे में यहां की सियासत में बीजेपी कमजोर होगी और सपा-आरएलडी को लाभ होगा। मगर इलेक्शन की घोषणा एवं उम्मीदवारों के चयन के बाद ऐसा होता नहीं नजर आ रहा है। जाट बहुत जिन सीटों पर आरएलडी को मजबूत बताया जा रहा था, तो वहीं ये गठबंधन कमजोर होता नजर आ रहा है। सिवालखास, छपरौली व कैराना से लेकर मांट तक में ऐसे ही हालात हैं।
जाट समाज के एक वर्ग का मानना है कि अखिलेश संग गठबंधन में जयंत चौधरी ठीक से बातचीत नहीं कर पाए और उन्होंने अपने गढ़ की सीटें सपा को दे दीं। जिले मुजफ्फरनगर की सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिए जाने से एक तरफ मुस्लिम समुदाय नाराज है तो वहीं सिवलखास, कैराना और बागपत जैसी सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं देने से जाट समुदाय नाराज है।
आरएलडी के पुराने कार्यकर्ता भी जयंत के फैसलों पर सवाल उठा रहे हैं। इतना ही नहीं एक तरफ जहां संजय लाठेर आगरा की मंट सीट पर उतरने जा रहे हैं, वहीं जयंत के पुराने नेता योगेश नौहवार पीछे हटने को राजी हो गए हैं, लेकिन अंदरूनी कलह का भय सता रहा है।