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लखनऊ। आयुर्वेद निदेशालय में कायदे कानून को ताक पर रखकर चहेतों को मलाईदार पदों का जिम्मा सौंपा जा रहा है। हालिया ऐसे क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी को औषधि निरीक्षक (डीआई) का चार्ज दिया गया है, जो मुख्यालय पर तैनात नहीं है। उनकी तैनाती पहले से गाजियाबाद में है। जबकि औषधि निरीक्षक का पद मुख्यालय पर रिक्त है। ऐसे में लाख टके का सवाल उठता है कि क्या आयुर्वेद सेवायें में योग्य व जिम्मेदार अफसरों की कमी हो गई है, जिसकी वजह से दूरस्थ जिले में तैनात अफसर को मुख्यालय पर औषधि निरीक्षक का भी चार्ज दिया जा रहा है। विभागीय जानकारों का कहना है कि तैनाती का यह नवीन आदेश अनियमितताओं की तरफ संकेत करता है। मतलब साफ है कि दाल में कुछ काला है।

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दरअसल आयुर्वेद निदेशालय के राजधानी स्थित मुख्यालय पर औषधि निरीक्षक का पद सृजित है। पिछले कुछ समय से यह रिक्त है। सामान्यत: इस पद की जिम्मेदारी मुख्यालय पर ही तैनात किसी अधिकारी को दी जाती है। इसके उलट निदेशक आयुर्वेद सेवायें प्रो एसएन सिंह ने गाजियाबाद के क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी डा अशोक कुमार राणा को ही औषधि निरीक्षक का चार्ज दे दिया। मजे की बात यह है कि राणा पहले से ही गाजियाबाद जैसे अहम जिले के क्षेत्रीय अधिकारी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। नयी तैनाती के बाद अब उन पर राजधानी में भी अपनी सक्रियता दिखाने का दबाव होगा। जानकारों का कहना है कि निदेशक के एक साथ दो अहम पदों का चार्ज चहेते अफसर को दिए जाने के फैसले पर विभाग के अंदरखाने से ही सवाल उठ रहे हैं। इस फैसले से अनियमितताओं की बू आ रही है।

काम चलाऊं व्यवस्था बना रहें निदेशक

योगी सरकार भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टालरेंस नीति पर काम कर रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ खुद लोक सेवकों को व्यवस्था के कील कांटे दुरूस्त रखने की हिदायत देते रहे हैं। पर निदेशक आयुर्वेद सेवायें को काम चलाऊं व्यवस्था पर ही भरोसा है। उनके जारी कार्यालय ज्ञाप से यह साफ झलक भी रहा है। आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि आयुर्वेद निदेशालय में औषधि निरीक्षक का पद रिक्त है। कार्य एवं प्रक्रिया अवरूद्ध नहीं हो। यह देखते हुए तात्कालिक प्रभाव से डा राना अपने कार्य एवं दायित्वों के साथ काम चलाऊं व्यवस्था के तहत निदेशालय में रिक्त औषधि निरीक्षक के पद का कार्य सम्पादित करेंगे।

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