बड़ी खबर: बॉर्डर पर हालात गंभीर, सैन्य वार्ता नाकाम, भारत ने सीमा पर भेज दी….

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नई दिल्ली, 07 सितम्बर । पूर्वी लद्दाख के दक्षिणी पैगॉन्ग इलाके में 29/30 अगस्त की रात चीनियों की घुसपैठ नाकाम होने के बाद लगातार 6 दिन तक दोनों देशों के बीच चली ब्रिगेड कमांडर स्तरीय वार्ता भी कोई ठोस परिणाम नहीं दे सकी है। एक तरह से ब्रिगेड कमांडर स्तर की वार्ताओं को इसलिए नाकाम मान लिया गया है.

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बता दें कि इस की वजह चीनी सैनिक पीछे हटने की बजाय भारत पर ही दबाव डाल रहे हैं कि हम उस क्षेत्र को छोड़ दें, जिन आधा दर्जन रणनीतिक चोटियों पर हमने पिछले सप्ताह सेना की नए सिरे से तैनाती की थी। वहीँ बदले हालातों में भारत ने सीमा पर एनएसजी कमांडो की 4 यूनिट भेज दी हैं।

गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख के दक्षिणी पैगॉन्ग इलाके में 29/30 अगस्त की रात में चीनी सेना (पीएलए) के जवानों ने थाकुंग चोटी पर घुसपैठ करने की कोशिश की, जिसको भारतीय सेना के जवानों ने नाकाम कर दिया और चीनी सेना को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। भारतीय सैनिकों ने इस क्षेत्र में लगे चीनी सेना के खुफिया कैमरे और सर्विलांस सिस्टम भी तोड़कर फेंक दिया।

सेना के सूत्रों का कहना है कि इसी के बाद पैगॉन्ग झील के दक्षिणी किनारे पर थाकुंग चोटी से लेकर 3 किमी. क्षेत्र में रेज़ांग ला तक फैली रणनीतिक चोटियों ब्लैक टॉप, हेलमेट, मागर और गुरुंग हिल्स को अपने कब्जे में लेकर इन पर नये सिरे से सैनिकों की तैनाती करने की गोपनीय योजना तैयार की गई थी।

120 मिनट के अन्दर आधा दर्जन पहाड़ियों की सामरिक ऊंचाइयों पर पहुंचना था

इसी ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अगस्त की शुरुआत में तैनात की गई माउंटेन डिवीजन को जिम्मेदारी दी गई। माउंटेन डिवीजन ने टोह लेने के साथ ही अपनी आक्रामक योजनाओं की तैयारी शुरू की। ये योजनाएं इतनी गुप्त थीं कि इस ऑपरेशन में शामिल किए जाने वाले सैनिकों को भी पता नहीं था कि क्या चल रहा है।

लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों में अभ्यस्त सेना की माउंटेन डिवीजन के साथ ही भारतीय सेना की खुफिया बटालियन ‘विकास रेजिमेंट’ को भी इस गोपनीय योजना में शामिल किया गया। इसके लिए उन्हें विशेष तौर पर पूर्वाभ्यास भी कराया गया। ​ग्राउंड जीरो पर पर्वतीय डिवीजन के प्लाटून कमांडरों ने पहले ही उन मार्गों का चयन कर लिया था। ‘गो’ शब्द सुनते ही 120 मिनट के अन्दर आधा दर्जन पहाड़ियों की सामरिक ऊंचाइयों पर पहुंचना था।

इनके साथ ही आर्टिलरी और बख्तरबंद सैनिकों को भी अच्छी तरह से तैयार किया गया था, ताकि अगर पीएलए योजना को अंजाम देने में रोड़ा बने तो निपटा जा सके। वायु सेना की टुकड़ियों को भी एंटी-एयरक्राफ्ट इगला मिसाइलों के साथ तैनात किया गया था, जो अग्रिम सैनिकों की योजना में हस्तक्षेप करने वाले किसी भी चीनी विमान को मार गिराने के लिए तैयार थीं।

भारत की कार्यवाही को देखकर हैरान

इन सैनिकों ने ‘ग्रीन सिग्नल’ मिलते ही बिजली की गति के साथ दुश्मन के दावे वाले क्षेत्र को पार किया और 120 मिनट के भीतर चुशुल क्षेत्र की आधा दर्जन रणनीतिक पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। साथ ही 1962 में चीन के कब्जे वाले क्षेत्र में जाकर ‘ब्लैक टॉप’ पर भी तिरंगा फहरा दिया।

उधर, चीनी भी अपनी मैकेनाइज्ड कॉम्बैट टीम के साथ मोल्दो के पास स्पैंगुर में तैनात थे। उनके पास इस ऊंचाई वाले क्षेत्र में लड़ाई लड़ने के लिए 33 टन के टी-15 लाइट टैंक थे। इन सबके बावजूद उन्हें भारतीय सेना के जांबाजों की योजना के बारे में भनक तक नहीं लगी और सुबह का उजाला होने पर रात में की गई भारत की कार्यवाही को देखकर हैरान रह गये। ​​

इसके बाद चीन ने लगभग 150 पीएलए सैनिकों को एक एंटी एयरक्राफ्ट गन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के किनारे ‘ब्लैक टॉप’ पर वहां तैनात किया है, जहां से भारतीय सैनिकोंं से सीधी टक्कर ली जा सकती है।​ ​भारतीय सेना ने भी पैंगोंग के दक्षिणी छोर पर अपना दबदबा बनाने के बाद रेकिन लॉ के पास उस चीनी निगरानी प्रणाली को हटा दिया है, जिसे इलेक्ट्रॉनिक निगरानी टॉवर बनाकर फिट किया गया था।

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