Up Kiran, Digital Desk: पशु अधिकारों की प्रबल पैरोकार और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने आवारा पशुओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देश पर अपनी चिंता जाहिर की है. उन्होंने इस आदेश को 'अव्यवहारिक' बताया है कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों और ऐसी ही सार्वजनिक जगहों से आवारा कुत्तों को हटाकर उनकी नसबंदी और टीकाकरण कराके उन्हें शेल्टर होम में रखा जाए. साथ ही, राजमार्गों और एक्सप्रेसवे से भी आवारा पशुओं और मवेशियों को हटाने का निर्देश दिया गया था.
मेनका गांधी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश "करो लेकिन कोई कर नहीं सकता" जैसा है, क्योंकि यह पूरी तरह से अव्यावहारिक है.उनका मानना है कि इन आदेशों को जमीन पर लागू कर पाना मुश्किल है. एक कार्यक्रम के दौरान पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि "कुत्तों को हटाओ, बिल्लियों को हटाओ, बंदरों को हटाओ और उन्हें शेल्टर में डालो", लेकिन हकीकत में कोई भी ऐसा नहीं कर पाएगा.
गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में पशुओं के प्रति हमारा नजरिया नियंत्रण पर नहीं, बल्कि दया और सहानुभूति पर टिका होना चाहिए. उन्होंने स्थानीय निकायों (Municipal Bodies) के बीच तालमेल की कमी पर भी चिंता जताई, जिससे ऐसे निर्देशों को लागू करने में और भी दिक्कतें आएंगी मेनका गांधी का कहना है कि देश में आश्रय गृहों की भारी कमी है, ऐसे में लाखों आवारा कुत्तों को कहां रखा जाएगा, यह एक बड़ा सवाल है.
उन्होंने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर कुत्तों को इन जगहों से हटा दिया गया और सड़कों पर छोड़ दिया गया, तो वे फिर से काट सकते हैं उनका तर्क है कि जब देश में पर्याप्त आश्रय नहीं हैं, तो उन्हें शेल्टर होम में रखना एक हास्यास्पद स्थिति है. मेनका गांधी की इन टिप्पणियों से आवारा पशुओं और उनके प्रबंधन से जुड़े कानूनों पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है.




