img

Business News: भारतीय रिजर्व बैंक की क्रेडिट पॉलिसी कमेटी की बैठक हाल ही में हुई। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में 6 अगस्त से 8 अगस्त तक बैठक हुई। इस बैठक के बाद शक्तिकांत दास ने बैठक के फैसलों की जानकारी दी। इस बीच दास ने बताया कि रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

रिजर्व बैंक ने निरंतर नौवीं बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। आरबीआई के फैसले के एक दिन बाद 3 सरकारी बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी है। इससे उपभोक्ता की जेब पर असर पड़ेगा।

सार्वजनिक क्षेत्र के केनरा बैंक ने फंड के सीमांत लागत आधारित ब्याज (एमसीएलआर) में 0.05 % की बढ़ोतरी की है। यह बढ़ोतरी सभी अवधि के लोन के लिए की गई है। इससे ज्यादातर कर्ज महंगे हो जाएंगे। केनरा बैंक ने शेयर बाजार को दी जानकारी में कहा, एक साल की एमसीएलआर अब 9 % होगी। यह फिलहाल 8.95 % है। इसका उपयोग ऑटो और व्यक्तिगत ऋण जैसे अधिकांश उपभोक्ता ऋणों पर ब्याज निर्धारित करने के लिए किया जाता है।

तीन साल की एमसीएलआर अब 9.40 % होगी। इस बीच दो साल की एमसीएलआर को 0.05 % बढ़ाकर 9.30 % कर दिया गया है। एक महीने, तीन महीने और छह महीने के लिए ब्याज 8.35 से 8.80 % के बीच होगा। नई दरें 12 अगस्त 2024 से प्रभावी होंगी।

इसके अलावा बैंक ऑफ बड़ौदा ने 12 अगस्त से एक अवधि के लिए एमसीएलआर में बदलाव किया है। यूको बैंक की परिसंपत्ति देनदारी प्रबंधन समिति (ALCO) 10 अगस्त से एक निश्चित अवधि के लिए ऋण दर में पांच आधार अंकों की बढ़ोतरी करेगी।

जिस तरह हम किसी बैंक से कर्ज लेते हैं और उसे तय ब्याज के साथ चुकाते हैं, उसी तरह सार्वजनिक, निजी और वाणिज्यिक क्षेत्र के बैंकों को भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है। ऐसी स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को जिस ब्याज दर पर ऋण दिया जाता है उसे रेपो रेट कहा जाता है।

अगर रेपो रेट घटता है तो आम आदमी को राहत मिलती है और जब रेपो रेट बढ़ता है तो आम आदमी की जेब पर बोझ बढ़ जाता है। जब रेपो रेट बढ़ता है तो बैंकों को ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज मिलता है। इस तरह आम लोगों को मिलने वाले लोन की दरें बढ़ जाती हैं। वहीं, रेपो रेट कम होने पर कर्ज सस्ता हो जाता है।

महंगाई से लड़ने के लिए रेपो रेट एक शक्तिशाली उपकरण है, जिसका इस्तेमाल आरबीआई वक्त वक्त पर स्थिति के आधार पर करता है। जब मुद्रास्फीति बहुत ज्यादा होती है, तो आरबीआई अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह को कम करने और रेपो दर बढ़ाने की कोशिश करता है। इसमें आमतौर पर 0.50 या उससे कम की वृद्धि होती है। लेकिन जब अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए पैसे का प्रवाह बढ़ाना जरूरी होता है और ऐसे में आरबीआई रेपो रेट को कम कर देता है और जरूरत न होने पर कुछ समय के लिए रेपो रेट को स्थिर रखता है।

--Advertisement--