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Up kiran,Digital Desk : दिल्ली की हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में, जहाँ एक रैन बसेरा किसी बेघर के लिए जन्नत से कम नहीं होता, वहीं वसंत विहार का एक 'आसरा' दो लोगों के लिए कब्रगाह बन गया। सोमवार की सुबह कुली कैंप के इस रैन बसेरे में लगी भीषण आग ने न सिर्फ दो ज़िंदगियाँ छीन लीं, बल्कि अपने पीछे सवालों का एक ऐसा धुआं छोड़ा है, जिसमें सिस्टम का दम घुटता नज़र आ रहा है।

एक तरफ जहाँ जली हुई लाशों की पहचान को लेकर एक दर्दनाक पहेली बन गई है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के इन रैन बसेरों की असलियत सामने आ गई है, जो बेहद डरावनी है।

एक लाश, दो दावेदार: कौन था वो बदनसीब?

  • एक शव की पहचान अशोक नाम के एक पिता ने अपने बेटे अर्जुन के रूप में की।
  • दूसरे शव के बारे में पहले स्थानीय लोगों ने बताया कि यह विकास नाम के युवक का है। लेकिन कहानी में मोड़ तब आया, जब पुलिस जांच में विकास ज़िंदा मिल गया।
  • अब महेंद्र नाम का एक शख्स सामने आया है, जो उस जली हुई लाश को अपने भाई संतोष का बता रहा है।

महेंद्र का कहना है कि उसका भाई संतोष पिछले एक महीने से इसी रैन बसेरे में सो रहा था और दो दिन से उससे मिला भी नहीं। अब पुलिस सच का पता लगाने के लिए अर्जुन के पिता और संतोष के भाई, दोनों का DNA सैंपल ले चुकी है, ताकि इस दर्दनाक पहेली को सुलझाया जा सके।

जब हमने की रैन बसेरों की पड़ताल: कागजों और हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क

  • सुरक्षा भगवान भरोसे: कागज़ों पर तो आग बुझाने वाले सिलेंडर लगे हैं, लेकिन हकीकत में आग लगने पर सबसे ज़रूरी चीज़, यानी बालू तक नहीं है। कई जगहों पर तो केयरटेकर या तो गायब मिले या अपनी ही धुन में सोते हुए। रामलीला मैदान के एक रैन बसेरे में तो केयरटेकर को कई बार उठाने के बाद उसकी नींद खुली।
  • एक कमरे में 25-30 लोग, और निकलने का सिर्फ एक रास्ता: कमरों में गद्दे, कंबल और कपड़ों का ढेर लगा है। एक छोटी सी चिंगारी भी बड़ी तबाही मचा सकती है। ऊपर से एक-एक कमरे में 25-30 लोग ठूंसे हुए हैं, जिनके आने-जाने का रास्ता भी सिर्फ एक है।
  • छतें जर्जर, दीवारें कमज़ोर: कई रैन बसेरों की छतें टूटने की कगार पर हैं, दीवारों से प्लास्टर झड़ रहा है और सीलन ने उन्हें कमज़ोर कर दिया है।
  • "जगह नहीं है, बाहर सो जाओ": और सबसे दर्दनाक हकीकत तो वो लोग बताते हैं, जिन्हें इन रैन बसेरों के अंदर घुसने तक नहीं दिया जाता। सड़कों पर रात गुज़ारने वाले नन्हे लाल कहते हैं, "यहाँ अंदर कुछ लोग ऐसे बैठे हैं जो किसी नए आदमी को घुसने ही नहीं देते। रैन बसेरा होने के बावजूद हम सड़क पर ही रात काटते हैं।" उमेश और नितिन जैसे कई और लोगों की भी यही शिकायत है कि केयरटेकर 'जगह भरी हुई है' कहकर उन्हें भगा देते हैं।

सियासत जागी, मंत्री पहुँचे: वादों का मरहम लगाने की कोशिश

घटना के बाद, मंत्री आशीष सूद ने मौके का दौरा किया और वही वादे किए जो ऐसी हर घटना के बाद किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि पीड़ितों को आर्थिक मदद दी जाएगी, सभी रैन बसेरों का ऑडिट होगा और सर्दियों में आग से बचाव के लिए अंगीठी की जगह सुरक्षित हीटर दिए जाएंगे।

लेकिन सवाल जस का तस है। क्या यह सरकारी वादे कागज़ों से निकलकर ज़मीन पर उतरेंगे, या फिर किसी अगली अनहोनी के बाद इन्हें फिर से दोहराया जाएगा?