देश के शीर्ष वैज्ञानिकों ने केंद्र सरकार को कोरोना वायरस के तेजी से फैलने की चेतावनी देते हुए इसके परीक्षण और क्वारंटीन की सुविधा को बढ़ाने, देशव्यापी निगरानी तंत्र स्थापित करने और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पर्याप्त सुरक्षा संसाधनों की व्यवस्था करने की सिफारिश की थी। वैज्ञानिकों ने गत फरवरी में ही लॉकडाउन के बजाय समाज और सिविल सोसाइटी के नेतृत्व में सेल्फ क्वारंटीन व सेल्फ मॉनिटरिंग’ की सलाह दी थी। लेकिन केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस को लेकर शीर्ष वैज्ञानिकों की चेतावनियों और सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया था।
गौरतलब है कि 30 जनवरी को ही भारत में कोरोना का पहला मामला दर्ज हुआ था। तब तक डब्ल्यूएचओ भी दुनिया को सावधान कर चुका था। इस दौरान आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने आकलन शुरू कर दिया था कि कोविड-19 का भारत किस तरह मुकाबला कर सकता है। अंतिम फरवरी में ये वैज्ञानिक दो शोध पत्रों को भी अंतिम स्वरूप दे चुके थे। दोनों शोध पत्र इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित भी हुए।
इसमें कहा गया था कि भारतीय परिस्थितियों में लॉकडाउन सिर्फ अमीर लोगों; जो कम भीड़-भाड़ वाले इलाकों में रहते हैं;’को एक-दूसरे से अलग करने का काम कर सकता है। यह एक हद तक उन लोगों को ही संक्रमण से बचा सकता है। गरीबों के मामले में घर-घर जाकर स्क्रीनिंग और अविलंब संक्रमित व्यक्तियों को क्वारंटीन किये बिना लॉकडाउन समुदायों के अंदर वायरस को फैलाने का काम ही करेग; क्योंकि गरीब लोग भीड़-भाड़ वाले सघन इलाके में रहते हैं, वे सार्वजनिक शौंचालय जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं।
इसी तरह लॉकडाउन को लेकर वैज्ञानिकों का सुझाव था कि प्रशासन की मदद से जोर-जबर्दस्ती करने के बजाय समाज और सिविल सोसाइटी की अगुवाई और निगरानी में क्वारंटीन अभियान बेहतर रहेगा। केंद्र सरकार ने वैज्ञानिकों के इन सुझावों को नजरअंदाज करते हुए काफी विलम्ब से 18 मार्च को कोविड टास्क फोर्स बनाई; जिसमें 21 वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल थे। विनोद के पॉल को टास्क फोर्स का चेयरमैन बनाया गया। उनके साथ केद्रीय गृह सचिव प्रीति सूदन और आईसीएमआर के महानिदेशक को भी जिम्मेदारी दी गई।
टास्क फोर्स अभी विचार ही कर रही थी कि 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिर्फ चार घंटे की मोहलत देते हुए 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी। जबकि उस समय सरकार के पास कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के लिए टेस्टिंग प्रोटोकॉल तक की सुविधा नहीं थी। इसके बाद 14 अप्रैल को सरकार ने लॉकडाउन को तीन मई तक और फिर १७ मई तक बढ़ाने की घोषणा कर दी। इस तरह केंद्र सरकार द्वारा वैज्ञानिकों के सुझाव को नजरअंदाज करने से गरीबों और प्रवासी मजदूरों के सामने आजीविका और खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया।