मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना विधानसभा इलेक्शन नतीजे आज घोषित हो रहे हैं। कुछ दिन पहले ही इन राज्यों में उम्मीदवारों की किस्मत EVM मशीनों में कैद हो गई। अब इसी EVM से जीते-हारे प्रत्याशियों के नाम घोषित किये जा रहे हैं। इस बीच हर इलेक्शन में सबसे ज्यादा चर्चा EVM की होती है। आरोप है कि मशीन को हैक कर लिया गया या उसके साथ छेड़छाड़ की गयी। पर, क्या वाकई इस मशीन को हैक किया जा सकता है? चलो पता करते हैं।
EVM का क्या मतलब है और इसे भारत में कब पेश किया गया था?
पहले मतदान मतपत्र के माध्यम से किया जाता था। अब मतपत्रों की जगह EVM मशीनों ने ले ली है। हालांकि हर इलेक्शन में EVM पर सवाल उठते रहते हैं। EVM का पूरा नाम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन है। पहले मतदान मतपत्र पर होता था, पर 1982 में भारत में पहली दफा इस मशीन का इस्तेमाल किया गया।
EVM एक इलेक्ट्रॉनिक वोट काउंटिंग मशीन है। एक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन दो इकाइयों से बनी होती है, जिसमें एक नियंत्रण इकाई और एक मतदान इकाई शामिल होती है। यह पांच मीटर केबल से जुड़ा है।
इलेक्शन कमीशन के अनुसार, EVM नेटवर्क से जुड़े नहीं हैं - कोई भी कंप्यूटर इन मशीनों को नियंत्रित नहीं करता है। EVM में डेटा के लिए फ्रीक्वेंसी रिसीवर या डिकोडर नहीं होता है। मतदान के बाद इसे सील कर दिया गया है। फिर नतीजे वाले दिन ही इसे कड़ी सुरक्षा के बीच खोला जाता है। यानी इसमें किसी भी तरह की हैकिंग नहीं की जा सकती।
इस मशीन के माध्यम से मतदान की प्रक्रिया में दो भाग होते हैं, कंट्रोल यूनिट (सीयू) और बैलेटिंग यूनिट (बीयू)। नियंत्रण इकाई पीठासीन अधिकारी यानी रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) के अधीन है। एक मतदान इकाई एक मतपेटी में रखी जाती है। लोग यहां आकर वोट करते हैं। पीठासीन अफसर मतदाता की पहचान की पुष्टि करता है और फिर मतदाता नियंत्रण इकाई पर बटन दबाकर मतदान करता है।
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