Up Kiran, Digital Desk: दोस्तों, बिहार की राजनीति में अभी हर तरफ सिर्फ़ एक ही शोर है—नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। टी20 क्रिकेट की रफ़्तार से बदलती बिहार की राजनीति में नीतीश जी 'टेस्ट मैच' के वो खिलाड़ी हैं जो क्रीज़ छोड़ना जानते ही नहीं।
लेकिन आज हम राजनीति, गठबंधन और सीटों के गणित से हटकर एक ऐसी चीज़ पर बात करेंगे जिसे शायद आप में से बहुत लोग नहीं जानते होंगे। हम सब उन्हें 'नेता जी' या 'सीएम साहब' कहते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि अगर वो राजनीति में नहीं आते, तो शायद किसी बड़े पावर प्लांट में बिजली ठीक कर रहे होते?
जी हाँ, आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं। हमारे सीएम साहब दरअसल क्वालिफाइड इंजीनियर हैं। आइये, आज टटोलते हैं नीतीश कुमार की 'मार्कशीट'।
NIT पटना के स्टूडेंट रह चुके हैं नीतीश बाबू
आज जिसे हम NIT पटना (National Institute of Technology) के नाम से जानते हैं, 1970 के दशक में वह बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग हुआ करता था। नीतीश कुमार ने यहीं से पढ़ाई की है।
साल 1972 की बात है, जब उन्होंने यहाँ से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (Electrical Engineering) में अपनी डिग्री पूरी की थी। यानी कि वो एक ट्रेन्ड इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं। कहते हैं कि पढ़ाई में वो काफी तेज थे, लेकिन किस्मत को शायद उन्हें बिहार का 'फ्यूज' जोड़ने का काम देना था, मशीनों का नहीं।
सरकारी नौकरी छोड़ी, और निकल पड़े 'सिस्टम' बदलने
डिग्री हाथ में थी, टैलेंट था, और उस जमाने में इंजीनियरिंग की वैल्यू क्या होती थी, ये तो आप जानते ही हैं। नीतीश कुमार को बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी का मौका भी मिला। एक आम मिडिल क्लास परिवार के लड़के के लिए सरकारी नौकरी किसी सपने से कम नहीं होती। उन्होंने जॉइन भी किया, लेकिन... मन नहीं लगा।
उस दौर में देश में 'जेपी आंदोलन' (जयप्रकाश नारायण का आंदोलन) की आंधी चल रही थी। युवा खून उबाल मार रहा था। नीतीश जी ने भी तय किया कि वो अपना जीवन इंजीनियरिंग की फाइलों में नहीं, बल्कि समाज सेवा में लगाएंगे। उन्होंने नौकरी छोड़ी और जेपी के साथ हो लिए। यहीं से 'इंजीनियर नीतीश' का सफ़र खत्म हुआ और 'नेता नीतीश' का सफ़र शुरू हुआ।
इंजीनियरिंग वाला दिमाग राजनीति में?
अक्सर लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार की काम करने की शैली में उनका 'इंजीनियरिंग बैकग्राउंड' झलकता है। चाहे सड़कों का जाल बिछाना हो, या बिहार के हर गांव में बिजली पहुँचाना—उनके एजेंडे में इंफ्रास्ट्रक्चर हमेशा ऊपर रहा है।
उनके आलोचक और प्रशंसक, दोनों मानते हैं कि वो राजनीति में भी 'सोशल इंजीनियरिंग' के माहिर खिलाड़ी हैं। जिस तरह एक इंजीनियर को पता होता है कि कौन सा तार कहाँ जोड़ने से लाइट जलेगी, वैसे ही नीतीश जी को पता है कि किस जाति और गठबंधन का 'कनेक्शन' जोड़ने से सत्ता की कुर्सी मिलेगी।
तो, कैसा लगा जानकर?
अगली बार जब आप टीवी पर नीतीश कुमार को भाषण देते हुए देखें, तो याद रखिएगा कि यह वो शख्स है जो कॉम्प्लेक्स इलेक्ट्रिकल सर्किट को सुलझाने की पढ़ाई करके आया है, और शायद इसीलिए बिहार की कॉम्प्लेक्स राजनीति को पिछले 20 सालों से डिकोड कर पा रहा है।
आपको क्या लगता है—क्या पढ़े-लिखे लोगों का राजनीति में आना फ़ायदेमंद होता है? अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएं।
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