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2024 की जंग जीतने के लिए बीजेपी जहाँ राम मंदिर, हिंदुत्व, समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों के साथ आगे बढ रही है। वहीं विपक्षी एकता उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है और उसकी काट के लिए बीजेपी भी रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है और ये रणनीति है पुराने साथ।

दरअसल बीजेपी जानती है कि विपक्षी दलों की एकता बीजेपी को नुकसान पहुँचा सकती है। लिहाजा बीजेपी ने अपने पुराने साथियों को फिर से जोडना शुरू कर दिया।

पुराने साथियों को लामबंद कर विपक्षी एकता को मात दी जा सकती है। बीते लोकसभा चुनाव से अब तक बीजेपी अपने कई साथियों को खो चुकी है।

दरअसल 2014 और 2019 में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई। इसके बाद गठबंधन की राजनीति कमजोर पड़ गई। बीजेपी ने सरकार में सहयोगी दलों को सांकेतिक भागीदारी दी।

महाराष्ट्र में दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने अठारह सीटें जीती। विधान सभा चुनाव में शिवसेना ने पाला बदल लिया और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना लिया यानि अठारह सीटों पर नुकसान हो सकता है।

कर्नाटक में भी बीजेपी सहयोगी की तलाश में बीजेपी देवगौडा के को अपने साथ लाने की कोशिश कर सकती है। विधानसभा चुनाव में को तेरह दशमलव तीन फीसदी वोट और उन्नीस सीटें मिली थी। बीजेपी को छत्तीस फीसदी वोट और छियासठ सीटें मिली। अगर आ जाए तो वोट फीसदी उनचास दशमलव तीन फीसदी हो जाएगा।

उत्तर प्रदेश में ही बीजेपी की नजर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन करने राजभर भी बीजेपी के साथ होने के संकेत दे रहे हैं। बिहार की बात करे तो दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनाव में चालीस सीटों में से उनतालीस सीटों पर बीजेपी और सहयोगी दलों ने जीत दर्ज की। सोलह को छह सीटें मिली थी, अलग हो गई है यानी सोलह सीटों का नुकसान हो सकता है।

बिहार में होने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए अब छोटे दलों को साथ रही। कभी नीतीश के साथ रहे उपेंद्र कुशवाहा, पार्टी के मुखिया मुकेश तनी, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी को साथ लेकर सोशल इंजिनिरिंग की बदौलत बीजेपी नीतीश को उनके घर में ही समेट देना चाहती है।

जीतन राम मांझी ने अमित शाह से मुलाकात के बाद में शामिल होने का ऐलान भी कर दिया। पंजाब में भी बीजेपी अपने पुराने सहयोगी अकाली दल को फिर से साथ दिला सकती है।
 

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