विविधता में एकता को भारत की सबसे बड़ी ताकत माना जाता है। मगर कई बार यही विविधता देश की कमजोरी भी बन जाती है, जैसा कि मणिपुर में देखने को मिल रहा है, जहां दो मूल समुदायों के बीच 3 मई से लगातार झड़पें हो रही हैं। मणिपुर की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बांग्लादेश, म्यांमार, चीन, भूटान और नेपाल से लगती हैं।
ऐसे में इस संवेदनशील राज्य में हालात को अलग अलग नजरिए से देखने, समझने और सबसे ज्यादा संभालने की जरूरत है। मणिपुर की गंभीर स्थिति मणिपुर में 3 मई से हिंसा जारी है। अब तक 140 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। उग्र भीड़ ने हजारों घरों को आग के हवाले कर दिया है। और भी ज्यादा डरावना है कि पुलिस शस्त्रागारों से लगभग 4000 हथियार लूट लिए गए और इनमें से बहुत कम की बरामदगी हो पाई है।
हाल ही में वायरल एक वीडियो में दिखा कि दो कुकी महिलाओं को आपत्तिजनक अवस्था में घुमाया गया और भीड़ ने उनके साथ छेड़छाड़ की। इस वीडियो ने पूरे देश में उबाल ला दिया। इससे जाहिर हुआ कि महिलाओं को मणिपुर में लगभग गृहयुद्ध जैसी स्थिति का अंजाम भुगतना पड़ रहा है।
पिछले हफ्ते चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि हिंसा को अंजाम देने के लिए महिलाओं को साधन के रूप में उपयोग करना संवैधानिक लोकतंत्र में बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है।
कूकी बनाम मैतेई विवाद
मणिपुर में जारी इस संघर्ष को केवल ईसाई कुकी और हिंदू मैतेई के बीच संघर्ष के रूप में नहीं देखा जा सकता। न ही इसे पूरी तरह आदिवासी बनाम गैर आदिवासी की लड़ाई कहा जा सकता है।
यही वजह है कि नगा, जो ईसाई भी होते हैं और अनुसूचित जनजाति में भी हैं, उन्होंने खुद को इस झमेले से दूर ही रखा है। वर्तमान स्थिति की मुख्य वजह है जमीन और कुछ पुराने फैक्टर। कुकी समुदाय को हमेशा से संदेह रहा है कि किसी दिन मैतेयी उनकी पहाड़ियों पर कब्जा करने की योजना बनाएंगे। राज्य की आबादी में मैतेयी की जनसंख्या आधे से ज्यादा है, लेकिन ज्यादातर सूबे के 10वें हिस्से के बराबर भूमि पर रहते हैं। मुख्य रूप से घाटी में मैतेयी ओबीसी के तहत आते हैं।
संघर्ष का पुराना इतिहास है
पूर्वोत्तर में इस तरह की जातीय झड़प पहली बार देखने को नहीं मिल रही। सन् 1992 से 1997 के बीच मणिपुर की पहाड़ियों पर नगा और कुकी के बीच लड़ाई हुई। यह एक असमान लड़ाई थी, क्योंकि नगाओं की ओर से एनएससीएन आईएम के हथियारबंद लड़ाकों ने मोर्चा संभाल रखा था। इसी तरह 1996 में असम के बोडो जनजाति के सशस्त्र समूहों ने राज्य के पश्चिमी हिस्से में रहने वाले संथालों को निशाना बनाया। झारखंड में संथाल एक जनजाति है, जबकि असम में इसे ओबीसी कैटेगरी में रखा गया है। मिजोरम की राजधानी आइजोल ने तो 1996 में भारतीय वायुसेना द्वारा बमबाजी देखी थी। दरअसल, मिजो नेशनल आर्मी के गुरिल्लाओं पर काबू पाने के लिए लड़ाकू विमान भेजे गए थे। यह एक अलग कहानी है कि मिजोरम आज शांतिपूर्ण है और उन दिनों के शीर्ष उग्रवादियों में से एक जोरम थंगा राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
नॉर्थ ईस्ट का पेचीदा समीकरण
पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा शामिल हैं। यहां भारत की 3.78 फीसदी आबादी रहती है, जबकि यह देश के कुल क्षेत्रफल का आठ फीसदी कवर करता है। सिक्किम को छोड़कर इन राज्यों में रहने वाले लोग उग्रवाद के शिकार रहे हैं। पूर्वोत्तर में पिछले दो दशकों के दौरान सुरक्षा की स्थिति सुधरी है।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल दो हज़ार में पूर्वोत्तर में उग्रवाद संबंधी 1963 घटनाएं हुई और 903 नागरिकों की हत्या हुई। इसके मुकाबले साल दो हज़ार 22 में उग्रवाद से जुड़ी केवल 201 घटनाएं दर्ज की गई और सात नागरिक हताहत हुए। साल दो हज़ार 20 से 2 हज़ार 22 के दौरान छह हज़ार 192 उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया। इस इलाके पर पकड़ रखने वालों का मानना है कि मणिपुर की हिंसा में उग्रवादी संगठनों को बढ़ावा मिल सकता है, जिसे रोकना हर हाल में केंद्र और राज्य सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
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