जानें- अगर दोस्तों पर हो रहा हो अत्याचार तो क्या कहती है कुरआन की ये आयत!

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अजब-गजब॥ सूरए कसस की आयत संख्या 18/19 का अर्थ- फिर उसके बाद पैगम्बर मूसा शहर में डरते हुए और चिंतित प्रविष्ट हुए तो अचानक (देखा कि) वही शख्स जिसने कल उनसे मदद मांगी थी, फिर उन्हें सहायता के लिए पुकार रहा है। पैगम्बर मूसा ने उससे कहा निश्चय ही तू स्पष्ट रूप से बहका हुआ इंसान है।

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फिर जब उन्होंने उस मनुष्य को पकड़ने का इरादा किया जो उन दोनों का शत्रु था, तो वह बोल उठा, हे मूसा! क्या तुम मुझे (भी) मार डालना चाहते हो जिस तरह तुमने कल एक शख्स को मार डाला था? तुम इस देश में बस निर्दयी व अत्याचारी बनकर रहना चाहते हो और सुधार करने वालों में शामिल नहीं होना चाहते।

संक्षिप्त टिप्पणी:

अपने दोस्तों की ग़लतियों तथा गंदे कामों पर उनकी आलोचना करनी चाहिए मगर इसी के साथ अत्याचारी शत्रु के मुक़ाबले में उन्हें अकेला नहीं छोड़ा चाहिए।

इन कुरानी आयतों से मिलने वाली शिक्षा

दुश्मन से संघर्ष में बिना युक्ति और कार्यक्रम के मैदान में नहीं उतरना चाहिए तथा ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे अपने और दूसरों के लिए मुसबीतें भी खड़ी हों और कोई नतीजा भी न निकले।

अपने दोस्तों की ग़लतियों और ग़लत कामों पर उनकी आलोचना करनी चाहिए मगर इसी के साथ अत्याचारी शत्रु के मुक़ाबले में उन्हें अकेला नहीं छोड़ा चाहिए। दुश्मन के मुक़ाबले में पूरी शक्ति से खड़े होना चाहिए और अपनी पूरी क्षमता से उससे मुक़ाबला करना चाहिए।

 

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