नई दिल्ली॥ हिंद महासागर में चीन (दुश्मन देश) का मुकाबला करने के लिए भारत 6 स्टील्थ पनडुब्बियों का निर्माण खुद स्वदेशी प्रोजेक्ट-75आई के तहत करेगा। विदेशी सहयोग से घरेलू निर्माण के लिए 14 वर्ष से लंबित 43 हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना को आज औपचारिक रूप से अनुमति मिल गई।
इन पनडुब्बियों को नेवी के बेड़े में शामिल होने में लगभग एक दशक लगेगा। रणनीतिक भागीदारी मॉडल के तहत भारतीय नौसेना के लिए पी-75आई श्रेणी की 6 पनडुब्बियों का निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अनुरूप भारत में ही किया जाएगा। चीन की नौसेना की बढ़ती ताकत के मुकाबले ये पनडुब्बियां भारत की ताकत में इजाफा करेंगीं।
रक्षा अधिग्रहण परिषद की अध्यक्षता करते हुए शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लगभग 43 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना को औपचारिक रूप से मंजूरी दे दी। इस प्रोजेक्ट-75आई के तहत भारत में ही एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) फिटेड 06 नई पारंपरिक स्टील्थ पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा।
प्रोजेक्ट-75आई को पहली बार नवम्बर, 2007 में प्रारंभिक मंजूरी मिली थी, तब से यह परियोजना लंबित थी। मोदी सरकार ने मई, 2017 में ‘मेक इन इंडिया’ प्लेटफॉर्म के तहत इस परियोजना को देश के सामने रखा था।
रणनीतिक भागीदारी मॉडल के तहत लंबी प्रक्रिया के बाद रक्षा मंत्रालय ने दो भारतीय फर्मों लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स (एमडीएल) को चुना था। ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार की मई, 2017 में शुरू की गई रणनीतिक साझेदारी (एसपी) नीति के तहत यह पहली परियोजना बन गई है।
निर्माण में सहयोग के लिए पांच विदेशी कंपनियों में जर्मनी की थायसीनक्रूप मरीन सिस्टम, रूस की रुबिन डिज़ाइन ब्यूरो, स्पेन की नवानतिया, फ्रांसीसी जहाज निर्माता कंपनी नेवल ग्रुप और साउथ कोरिया की देवू शिपबिल्डिंग एंड मरीन इंजीनियरिंग कंपनी को चुना गया है।
वैसे फ्रांस से बढ़ रहे द्विपक्षीय संबंधों के बीच भारत फ्रांसीसी जहाज निर्माता कंपनी नेवल ग्रुप भारत से नई पनडुब्बियों का सौदा करने के लिए तैयार है। फ्रांस से पहले बैच में मिले पांच राफेल जेट को वायुसेना के बेड़े में शामिल करने के मौके पर पिछले साल भारत आईं फ्रांसीसी रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पैली और भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बीच 10 सितम्बर को हुई द्विपक्षीय वार्ता में भी पी-75आई प्रोजेक्ट की पनडुब्बियों के बारे में भी चर्चा हुई थी।
पी-75आई प्रोजेक्ट के तहत बनने वाली यह पनडुब्बियां भूमि-हमला क्रूज मिसाइलों और अधिक पानी के भीतर सहनशक्ति के लिए वायु-स्वतंत्र प्रणोदन के साथ होंगी। स्टील्थ सबमरीन यानी गुप्त पनडुब्बी पानी के अंदर अभियानों को अंजाम देती है। इसलिए दुश्मन को स्टील्थ पनडुब्बी की गतिविधियों का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है।
इंडिया को कम से कम 18 पारंपरिक पनडुब्बियों, छह एसएसएन और चार परमाणु-संचालित पनडुब्बियों की जरूरत है। पी-75आई प्रोजेक्ट के तहत पहली पनडुब्बी को रोल आउट करने में कम से कम एक दशक का समय लगेगा। नौसेना के पास वर्तमान में केवल 12 अन्य पुरानी डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं, जिनमें से केवल आधी चालू हैं और अगले साल एक के सेवानिवृत्त होने की उम्मीद है।
इंडिया के पास दो परमाणु-संचालित पनडुब्बियां आईएनएस अरिहंत और आईएनएस चक्र भी हैं, लेकिन आईएनएस चक्र के पास परमाणु-टिप वाली बैलिस्टिक मिसाइल नहीं है क्योंकि इसे रूस से पट्टे पर हासिल किया गया है।