लोकसभा इलेक्शन का बिगुल बज चुका है। उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर सात चरणों में लोकसभा इलेक्शन होंगे। सियासी पार्टियों ने कई सीटों पर कैंडिडेट भी उतार दिए हैं, मगर इस बार एक अलग पैटर्न देखने को मिल रहा है। राज्य की ऐसी एक दर्जन से अधिक सीटें हैं, जहां पर मुस्लिम समुदाय की आबादी 25 प्रतिशत से ज्यादा है, मगर वहां पर भी विपक्षी दलों ने हिंदू कैंडिडेट उतारा है।
हालांकि दो हज़ार 19 से पहले विपक्षी दल उन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारते रहे हैं। यूपी में मुस्लिम वोटर्स बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। कांग्रेस, सपा से लेकर बसपा भी मुस्लिम लुभाने की कोशिश में रहती है। मगर इस बार के विपक्षी पार्टियों ने मुस्लिमों से दूरी बना ली है और बीजेपी की तर्ज पर हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है।
वेस्ट उप्र से लेकर पूर्वांचल तक की सीटों पर यही देखने को मिल रहा है। मुस्लिम कौम सिर्फ विधानसभा सीटों पर ही नहीं बल्कि लोकसभा इलेक्शन में भी हार जीत की भूमिका अदा करते हैं।
दो हज़ार 19 में इन्हीं 7 में से छह जगह पर मुस्लिम सांसद चुने गए थे। वहीं दो हज़ार 14 में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया था। आजादी के बाद पहली बार ये मौका था जब कोई भी मुस्लिम चुनाव नहीं जीत सका। मुस्लिम वोटर लंबे अरसे तक यूपी में किंगमेकर की भूमिका अदा करते रहे हैं मगर वक्त की राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि राजनीति अल्पसंख्यक से हटकर बहुसंख्यक समुदाय के इर्दगिर्द सिमट गई है। यही वजह है कि बसपा से लेकर कांग्रेस और सपा तक किसी भी मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेलने से बच रही है।
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