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Up kiran,Digital Desk : सूफी गायक कैलाश खेर, जिन्होंने बॉलीवुड को 'तेरी दीवानी', 'तौबा तौबा', और 'सैयां' जैसे अनगिनत यादगार गाने दिए हैं, ने अपने 20 साल पुराने बैंड 'कैलासा' के संगीत की शाश्वतता (timelessness) का राज़ खोला है। उन्होंने बताया कि क्यों उनका संगीत हमेशा प्रासंगिक (relevant) बना रहता है, भले ही आज रैप और इलेक्ट्रॉनिक संगीत का ज़माना हो।

भावनाएँ कभी पुरानी नहीं होतीं: कैलाश खेर

पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कैलाश खेर ने कहा, "प्यार और भावनाएँ कभी भी आउट ऑफ स्टाइल नहीं होतीं। कैलासा का संगीत हमेशा प्रासंगिक रहेगा क्योंकि यह सीधे इंसानी भावनाओं को छूता है।" उन्होंने आगे कहा, "भले ही आज संगीत में रैप, इलेक्ट्रॉनिक साउंड्स और नए जॉनर का बोलबाला हो, लेकिन कैलासा जैसे भावनात्मक संगीत को लोग हमेशा सुनते रहेंगे।"

कैलासा से लोग जुड़ जाते हैं: पीढ़ी दर पीढ़ी संगीत का प्यार

कैलाश खेर का मानना है कि कैलासा का संगीत लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ता है। "जब लोग कैलासा सुनते हैं," वे कहते हैं, "उन्हें अपने पिता की याद आती है, या वे याद करते हैं कि कैसे वे इस संगीत को सुनकर बड़े हुए हैं। यही प्यार संगीत को ज़िंदा रखता है।" उन्होंने यह भी कहा कि इतने सालों में, कैलासा के संगीत का असर देखकर उन्हें एहसास हुआ है कि दुनिया में आज भी सच्चा प्यार मौजूद है। "जब तक धरती पर थोड़ा सा भी प्यार का पागलपन है, यह दुनिया खूबसूरती से खिलती रहेगी।"

'मेहर रंगत 2025' में कैलाश खेर का सुर-संगम

हाल ही में, 52 वर्षीय गायक और उनके बैंड ने दिल्ली के कनॉट प्लेस में आयोजित वार्षिक लोक संगीत फेस्टिवल 'मेहर रंगत 2025' में अपनी प्रस्तुति दी। कैलासा एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी शामिल हुईं। कैलाश खेर और उनके बैंड ने 'अल्लाह के बंदे', 'ओ रंगीले', 'जय जयकारा' और 'चक दे चक दे फट्टे' जैसे अपने सदाबहार गानों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कैलाश खेर का संगीत सिर्फ़ धुनें नहीं, बल्कि वो एहसास हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी दिलों को छूते आए हैं।