कोरोना त्रासदी के दौर में उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बड़े बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रही है। महामारी को रोकने के लिए हो रहे प्रयासों एवं लॉकडाउन से उत्पन्न संकटों के मध्य शुरू हुए राजनीतिक विमर्शों के बाद इस प्रक्रिया में और तेजी आई है। इस प्रक्रिया में जहाँ भाजपा एवं कांग्रेस ने दमदार उपस्थिति दर्शायी है, वहीं सपा और बसपा सूबे में प्रभावी होने के बावजूद नॉर्मल उपस्थिति ही दर्ज़ करा पा रही हैं।उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में प्रवासी मजदूरों का मुद्दा इस वक्त राजनीतिक विमर्श के केन्द्र में हैं। प्रवासी मजदूरों में ज्यादा तादाद दलित एवं पिछड़े समूहों से आने वाले लोगों की हैं। इसके बावजूद इस मुद्दे पर बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मुखर नहीं हैं। इसकी ख़ास वजह कोरोना संकट में दोनों ही पार्टियों का राजनीति में नये विमर्श से तालमेल न बिठा पाना है।
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सूबे की राजनीति में हो रहे इस नये बदलाव से मायावती और अखिलेश अपने को जोड़ नहीं पा रहे हैं। शायद दोनों नेता यह नहीं समझ पा रहे हैं कि कोरोना संकट में दुख झेल रहे अपने बेस वोट को कैसे मरहम लगाया जाए। सियासत के जानकारों का कहना है कि चूँकि प्रवासी मजदूरों का बड़ा हिस्सा दलितों एवं पिछड़ी जातियों से आता है, इसलिए मायावती को उनके कांग्रेस की तरफ झुकने की आशंका सता रही है। इसीलिए वे भाजपा के बजाय कांग्रेस पर हमले कर रही हैं। इसी तरह सपा भी मुस्लिम तबके की कांग्रेस में वापसी की आशंका से भयभीत है।
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अगर देखा जाए तो कांग्रेस कोरोना संकट के पहले से ही गरीबों और मजदूरों के सवालों से खुद को जोड़ने में लगी थी। इस वैश्विक महामारी के दौर में जब प्रवासी मजदूरों का संकट खड़ा हुआ, तो उसे इन उपेक्षित तबकों को जोड़ने में आसानी हुई। वैसे भी अनुसूचित जातियां बसपा के उभार के पहले और मुस्लिम तबका सपा के पहले कांग्रेस का ही वोट बैंक रहा है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अपने पत्रों और ट्विटर संवादों से सत्ता के समक्ष इस संकट काल में मजबूर सामाजिक समूहों के सवालों को उठाने के साथ ही सरकार को सुझाव भी देती रही हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ उनके अनेक सवालों एवं सुझावों पर प्रतिक्रिया भी देते रहे हैं। इसके साथ ही ‘बस विवाद’ पर सत्ता पक्ष एवं प्रियंका गांधी के नेतृत्व में काँग्रेस में जोरदार बहंसे हुई। बसपा और सपा इस पुरे परिदृश्य से ओझल ही रहे।
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इस तरह कोरोना काल में चल रहे सक्रिय हस्तक्षेपों एवं सेवा कार्य की राजनीति के जरिये कांग्रेस सक्रिय होकर उभर रही है। वह अप्रवासी श्रमिक और असंगठित क्षेत्र के कामगार वर्गों के सवालों के इर्द-गिर्द अपनी उपस्थिति लगातार मजबूत कर रही है। इससे २०२२ में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को मुख्य चुनौती कांग्रेस से ही मिलने की संभावना प्रबल होती जा रही है।
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