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Up Kiran, Digital Desk: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने जिस तरह एनडीए को सत्ता सौंपी उससे कहीं ज्यादा चर्चा लालू प्रसाद की पार्टी में मची भगदड़ की हो रही है। जीत की चमक से ज्यादा हार का दर्द सुर्खियां बटोर रहा है और उस दर्द का केंद्र बिंदु हैं तेजस्वी यादव के दो सबसे करीबी लोग – संजय यादव और रमीज नेमत खान।

पार्टी के अंदर से ही आवाजें उठ रही हैं कि तेजस्वी अब सिर्फ इन्हीं दो लोगों की सुनते हैं। पुराने साथी दरकिनार कर दिए गए हैं। टिकट बंटवारा हो या रणनीति हर फैसला इन दोनों की मर्जी से होता है। तेजस्वी की बड़ी बहन रोहिणी आचार्य ने भी खुलकर नाराजगी जताई है और कई वरिष्ठ नेता खुलेआम यही बात कह रहे हैं कि पार्टी अब "दो दोस्तों की निजी कंपनी" बनकर रह गई है।

सोमवार को जब तेजस्वी के 1 पोलो रोड वाले घर पर हार की समीक्षा बैठक और विधायक दल के नेता का चुनाव होना था तब बाहर कार्यकर्ता नारे लगा रहे थे – "संजय यादव हरियाणा वापस जाओ"। अंदर मीटिंग शुरू हुई तो भी यही मुद्दा गरम रहा। संजय यादव पर हमला होते देख तेजस्वी खुद बीच में कूद पड़े। बोले "संजय ने दिन रात एक कर दिया पार्टी के लिए। जो मेहनत उसने की है वो मैं जानता हूं तुम लोग नहीं जानते"। संजय यादव उसी कमरे में बैठे थे और बाकी सारे नेता चुपचाप सुनते रहे।

बैठक में तो और भी ड्रामा हुआ

बैठक में तेजस्वी इतने भावुक हो गए कि बोले "अगर आपको लगता है कि मेरे अलावा कोई और बेहतर नेतृत्व कर सकता है तो मैं खुद पीछे हट जाऊंगा"। ये सुनकर लालू प्रसाद को खुद फोन उठाना पड़ा। उन्होंने विधायकों से कहा कि तेजस्वी को मना लो और साथ ही साफ-साफ बोल दिया "परिवार का झगड़ा घर का झगड़ा है उसे हम लोग निपटा लेंगे। तुम लोग पार्टी को मजबूत करने का काम करो"।