उत्तराखंड में हरियाली से भरे पहाड़ों में लगी भयानक जंगली आग अंग्रेजों (फिरंगियों) की लालच, हमारे पूर्वजों और पिछली सरकारों के निर्णयों का परिणाम है।
अंग्रेजों की हुकूमत में वन्य जीवों के उत्थान के बजाय वन्य जीवों की हत्या और वन्य जीवों के निवास स्थल का नष्टिकरण किया गया। प्राचीन समय से ही पहाड़ों की हरियाली ने यहां के जीवन को संतुलित रखा है, लेकिन आधुनिक समय में वन्य जीवन के संरक्षण में धीरे-धीरे लापरवाही की गई। जंगली आग का सबसे बड़ा कारण इसी में देखा जा सकता है। वन्य जीवों के प्राकृतिक संरक्षण के लिए उन्हें पर्यावरणीय संतुलन और वन्य जीवों के लिए उपयुक्त आवास की आवश्यकता है।
चार्ल्स डार्विन की थीसिस "सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट" वन्य जीवों के लिए उचित आवास और उनके संरक्षण की महत्वपूर्णता को साबित करती है। वन्य जीवों की संरक्षण के लिए उन्हें सही संरचना, स्थान और आदर्श आवास प्रदान करना होगा, ताकि उनका संरक्षण और जीवनन का संरक्षण संभव हो सके।
देवभूमि के वनों में लगी भीषण आग के लगने के बहुत से कारण है. मगर सबसे ज्यादा खतरनाक है यहां लगे चीड़ के पेड़ों के जंगल. राज्य के जंगल में 16 प्रतिशत इलाका इन्हीं पेड़ों का है. बीते 300 वर्षों से ये 'खतरनाक सुंदरता' वाले चीड़ के पेड़ उत्तराखंड को क्षति पहुंचा रहे हैं।
इमारती लकड़ी की लालच में फिरंगियों ने चीड़ और देवदार के जंगल लगाए. इससे राज्य के जंगलों का वेजिटेशन मिक्स हो गया. जिसे बाद की सरकारों और उस वक्त लोगों ने सुधारा नहीं. इन्ही लापरवाही के चलते उत्तराखंड के खूबसूरत वनों में आग लग रही है।
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