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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड के धराली क्षेत्र में खीरगंगा की बाढ़ से तबाही के बाद एक और गंभीर खतरा मंडरा रहा है। श्रीकंठ पर्वत के ऊपर भारी मलबा और बोल्डर जमा हो गए हैं, जो आगामी बारिश में फिर से नीचे आकर धराली और आसपास के इलाकों पर कहर बरपा सकते हैं। यह चेतावनी एनडीआरएफ और एमआरटी की संयुक्त टीम द्वारा किए गए सर्वे के बाद आई है, जिन्होंने स्थिति को बेहद चिंताजनक पाया है।
खतरे में जमा मलबा और बोल्डर
सर्वे रिपोर्ट में यह सामने आया कि श्रीकंठ पर्वत पर भारी बारिश के बाद हुए भूस्खलन से कई बड़े बोल्डर और मलबा ऊपर के क्षेत्रों में एकत्र हो गए हैं, जिनका खतरा अब भी बना हुआ है। एनडीआरएफ और एमआरटी टीम का मानना है कि इन बोल्डरों और मलबे का नीचे आना अभी भी एक संभावित खतरा है। अगर अगले कुछ दिनों में भारी बारिश होती है, तो यह मलबा और बोल्डर फिर से नीचे की ओर खिसक सकते हैं, जिससे धराली और उसके आसपास की बस्तियों में एक नई आपदा उत्पन्न हो सकती है।
मलबे और बोल्डरों की खतरनाक स्थिति
सर्वे टीम ने यह भी बताया कि धराली से करीब 10.7 किलोमीटर दूर झंडा बुग्याल के सामने भारी भूस्खलन के कारण दो बड़े बोल्डर रुक गए हैं। यह बोल्डर और मलबा पहले ही भूस्खलन और बाढ़ के दौरान लूज हो चुके थे। ऐसे में अगले कुछ दिनों में भारी बारिश की स्थिति में यह बोल्डर फिर से खिसक सकते हैं और इलाके में तबाही का कारण बन सकते हैं।
एवलांच और ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ता खतरा
धराली की तबाही के पीछे का कारण अब तक जिन कारणों को बताया जा रहा था, जैसे कि बादल फटना (क्लाउड बर्स्ट), वह सही नहीं था। पर्यावरणविद और जन वैज्ञानिक डॉ. रवि चोपड़ा ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि धराली की तबाही की असल वजह एवलांच था, और इसके पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग का बड़ा हाथ है। उन्होंने कहा कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, और इससे एवलांच का खतरा बढ़ता जा रहा है। उनका यह भी मानना है कि सरकार को इस खतरे से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए थे, ताकि इस तरह की त्रासदी से बचा जा सके।
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