img

Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya : सपा संरक्षक व धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव के निधन बाद जहाँ एक ओर पूरा देश उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है वहीँ दूसरी ओर नेताजी यानि सपा संरक्षक मुलायम सिंह के राजनीतिक जीवनकाल को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। दशकों तक राजनीतिक दांव-पेंच के पुरोधा और विपक्ष की सियासत की धुरी रहे समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव कभी सियासी फलक से ओझल नहीं हुये। कभी कुश्ती के अखाड़े के महारथी रहे मुलायम सिंह यादव बाद में सियासी अखाड़े के भी माहिर पहलवान साबित हुए। आइये जानते हैं कि प्रधानमंत्री पद का सपना आखिर क्यों और कैसे अधूरा रह गया।

प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे मुलायम सिंह यादव

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में एक किसान परिवार में 22 नवंबर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह यादव ने राज्य का सबसे प्रमुख सियासी कुनबा भी बनाया। यादव 10 बार विधायक रहे और सात बार सांसद भी चुने गये। वह तीन बार (वर्ष 1989-91, 1993-95 और 2003-2007) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और 1996 से 98 तक देश के रक्षा मंत्री भी रहे। एक समय उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा गया था। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

मुलायम सिंह यादव दशकों तक राष्ट्रीय नेता रहे लेकिन उत्तर प्रदेश ही ज्यादातर उनका राजनीतिक अखाड़ा रह। समाजवाद के प्रणेता राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर सियासी सफर शुरू करने वाले यादव ने उत्तर प्रदेश में ही अपनी राजनीति निखारी और तीन बार प्रदेश के सत्ताशीर्ष तक पहुंच। वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी की बागडोर अखिलेश यादव के हाथ में आने के बाद भी मुलायम सिंह यादव पार्टी समर्थकों के लिए नेताजी बने रहे और मंच पर उनकी मौजूदगी समाजवादी कुनबे को जोड़े रखने की उम्मीद बंधाती थी। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

देवेगौड़ा ने छीन लिया था मौका

वर्ष 1996 में मैनपुरी से लोकसभा चुनाव जीते। विपक्षी दलों द्वारा कांग्रेस का गैर भाजपाई विकल्प तैयार करने की कोशिशों के दौरान मुलायम कुछ वक्त के लिए प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी नजर आये। हालांकि, वह एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गये। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

उस दौर में ये माना जा रहा था कि मुलायम का पीएम बनना तय ह। सारे पासे सेट कर लिए गए थे, मगर जयललिता ने अचानक झटका दिय। कहा तो ये भी जाता है कि लालू यादव ने भी मुलायम के साथ खेल कर दिया था। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

सुखोई लड़ाकू विमान का सौदा

रूस के साथ सुखोई लड़ाकू विमान का सौदा भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था। बाद में मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति का रुख किया और वर्ष 2003 में तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 2007 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बसपा की सरकार बनने पर वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला। उस वक्त भी मुलायम सिंह यादव के ही मुख्यमंत्री बनने की पूरी संभावना थी लेकिन उन्होंने अपने बड़े बेटे अखिलेश यादव को यह जिम्मेदारी सौंपी और अखिलेश यादव 38 वर्ष की उम्र में प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस लेने वाले यादव अपने समर्थकों के बीच हमेशा ‘नेता जी’ के नाम से मशहूर रहे। राम मंदिर आंदोलन के चरम पर पहुंचने के दौरान वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन करने वाले मुलायम सिंह यादव को देश के हिंदी हृदय स्थल में हिंदुत्ववादी राजनीति के उभार के बीच धर्मनिरपेक्षतापूर्ण सियासत के केंद्र बिंदु के तौर पर देखा गया। एक संघर्षशील और जुझारू नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले यादव के बारे में उनके समर्थक अक्सर कहते थे, ‘नेताजी संसद में होते हैं या सड़क प। ‘ यह लोगों से उनके जुड़ाव के साथ-साथ उनके राष्ट्रीय कद की गवाही देता है। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर थे मुलायम सिंह

समाजवादी मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक संभावनाओं को हमेशा खोल कर रखा और वह हर अवसर का इस्तेमाल करने वाले राजनेता रहे। जोड़-तोड़ की राजनीति में भी माहिर माने जाने वाले यादव समय-समय पर अनेक पार्टियों से जुड़े रहे। इनमें राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी भी शामिल हैं। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

वर्ष 1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया। यादव ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाने या बचाने के लिए जरूरत पड़ने पर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से भी समझौते किये। वर्ष 2019 में संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में दोबारा वापसी का ‘आशीर्वाद’ देकर उन्होंने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

उन्होंने यह बयान तब दिया जब बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सपा का मुख्य प्रतिद्वंदी दल माना जा रहा था। उनके इस बयान से तरह-तरह की अटकलें लगाई जाने लगी थीं। वर्ष 2014 में एक रैली में दिये गये उनके बयान को लेकर उनकी काफी आलोचना हुई थी जिसमें उन्होंने बलात्कार के दोषियों को फांसी दिये जाने के प्रावधान की आलोचना पर कहा था कि ‘लड़कों से गलती हो जाती है। मुलायम सिंह यादव ने भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश का एक परिसंघ बनाए जाने की भी वकालत की। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

मुलायम सिंह ने कैसे सियासत में पसारे पांव?

शुरुआती दिनों में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे मुलायम यादव ने राजनीति शास्त्र में डिग्री हासिल करने के बाद एक इंटर कॉलेज में कुछ समय के लिए शिक्षण कार्य भी किया। वह वर्ष 1967 में पहली बार जसवंत नगर सीट से विधायक चुने गये। अगले चुनाव में वह फिर इसी सीट से विधायक चुने गये। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

जुझारू नेता माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में आपातकाल घोषित किये जाने का कड़ा विरोध किया। वर्ष 1977 में आपातकाल समाप्त होने के बाद वह लोकदल की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बने। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

सियासत की नब्ज जानने की बेमिसाल योग्यता रखने वाले यादव वर्ष 1982 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुने गये। इस दौरान वह वर्ष 1985 तक उच्च सदन में विपक्ष के नेता भी रहे। वह वर्ष 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसी दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन ने तेजी पकड़ी और देश-प्रदेश की राजनीति इस मुद्दे पर केंद्रित हो गयी। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

मस्जिद को ‘बचाने’ के लिए गोलियां चलवाने का आरोप

अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा लग गया और उग्र कारसेवकों से बाबरी मस्जिद को ‘बचाने’ के लिए 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें पांच कारसेवकों की मौत हो गई। इस घटना के बाद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव बीजेपी तथा अन्य हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर आ गए और उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा गया। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर कड़ी कार्रवाई के बाद मुस्लिम समाज का एक बहुत बड़ा तबका समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ गया, जिससे पार्टी के लिए ‘मुस्लिम-यादव’ का चुनाव जिताऊ समीकरण उभर कर सामने आय। इससे समाजवादी पार्टी राजनीतिक रूप से बेहद मजबूत हो गयी। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

अन्य विरोधी दलों को राज्य में मजबूत नहीं होने दिया

यूपी की सियासत के पहलवान बनकर उभरे मुलायम सिंह यादव ने उसके बाद एक लंबे अरसे तक बीजेपी, कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों को राज्य में मजबूत नहीं होने दिया। नवंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव बीएसपी के समर्थन से एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन बाद में समर्थन वापस होने से उनकी सरकार गिर गयी। उसके बाद यादव ने राष्ट्रीय राजनीति का रुख किया। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

जब समाजवादी पार्टी में ही मचा कोहराम

वर्ष 2016 में यादव परिवार में बिखराव शुरू हो गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हो गई। एक जनवरी 2017 को पार्टी के आपात राष्ट्रीय अधिवेशन में यादव के स्थान पर उनके बेटे अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बना दिया गय। हालांकि मुलायम सिंह यादव को पार्टी का ‘सर्वोच्च रहनुमा’ (संरक्षक) बनाया गया। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

पार्टी में वाजिब ‘सम्मान’ नहीं मिलने पर शिवपाल यादव ने वर्ष 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अपनी अलग पार्टी बना लिया। हालाँकि मुलायम सिंह इस दौरान अपने कुनबे को एकजुट करने की भरपूर कोशिश करते रहे लेकिन इस बार उन्हें लगभग मायूसी ही हाथ लगी। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

इस साल के शुरू में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश और शिवपाल यादव एक बार फिर साथ आये। इसका श्रेय भी मुलायम सिंह यादव को ही दिया गय। हालांकि, चुनाव में पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली जिसके बाद शिवपाल और अखिलेश के रास्ते एक बार फिर अलग-अलग हो गया। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में मुलायम सिंह यादव स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से घिर गये और 10 अक्टूबर 2022 को गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में उन्होंने आखिरी सांस ल। मुलायम सिंह यादव जब तक जीवित रहे सपा कार्यकर्ताओं के लिए ‘नेता जी’ ही बने रह। (Mulayam Singh Yadav Ka Vo Sapna Jo Adhura Rah Gaya)

 

Rama Ekadashi 2022: इस दिन मनाई जाएगी रमा एकादशी, मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना है तो करें ये काम

Gul Panag ने दो बड़ी एक्ट्रेस को लेकर की भविष्‍यवाणी, बोलीं- जल्‍द रखेंगी राजनीति में कदम, बताया कैसी हैं एक्ट्रेस

Sapa Sanrakshak Mulayam Singh Yadav death : राष्ट्रपति, पीएम समेत दिग्गज नेताओं ने जताया दुख, यूपी में 3 दिन का राजकीय शोक, लालू यादव ने इस…

--Advertisement--