
UP News: उत्तर प्रदेश गन्ना विभाग राज्य के प्रमुख विभागों में से एक है। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण विभाग है जो प्रदेश की सभी चीनी मिलों पर पूरा नियंत्रण रखता है और राज्य की अर्थव्यवस्था में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा हैं लेकिन इस विभाग की हालत वर्तमान में ये है कि पूरा का पूरा विभाग और इस विभाग के अन्य अंग जैसे सहकारी समितियों में 40 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी व अधिकारी या तो संविदा पर या फिर ठेके पर कार्य कर रहे हैं।
गन्ना विभाग और उससे जुड़ी सहकारी समितियों में कार्य रत कर्मचारियो व अधिकारियों का कहना है कि आने वाले दो से तीन सालों में 65 से 70
प्रतिशत ही स्थाई कर्मचारी रह जायेंगे।
बता दें कि मुख्यमंत्री बार-बार गर्व से कहते हैं कि यह राज्य की पहली ऐसी सरकार है जिसने गन्ना किसानों का बकाया पूरा कर दिया। मुख्यमंत्री जी गर्व से कहते हैं कि हमने पर्ची सिस्टम खत्म करके इलेक्ट्रनिक पर्ची सिस्टम आरंभ करके एक क्रांतिकारी कदम उठाया।
घटतौली रूक गई...लेकिन आज यह विभाग अगर इस उपलब्धि को हासिल कर पाया है तो यहां के समस्त स्थाई और संविदा व ठेके के कर्म चारियों व अधिकारियों के कारण। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि राज्य सरकार को जिन युवा ठेके व संविदा कर्मियों ने स्थाई कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ मिलकर राज्य सरकार व म ुख्यमंत्री को गौरवान्वित होने का एहसास कराया है वे सभी हाशिये पर हैं। संविदा या ठेके के कर्मचारियों का वेतन 12 से 16 हजार हैं और वे सब के सब चुपचाप दिन-रात अपने कामों में लगे रहते हैं।
विभाग के अनेक स्थाई अधिकारी कहते हैं कि शासन से आदेश है कि गोपनीय कार्य संविदा या ठेके के कर्म चारियों से न कराया जाए। ऐसी स्थिति में किससे कराया जाय? जब स्थाई नियुक्तियां ही नहीं हैं। विभाग के ही एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि हालात यह हो चले हैं कि जो अधिकारी रिटायर हो रहे हैं उन्हीं को वापस एक फिक्स वेतन पर बुला कर उनसे काम लिया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश चीनी उत्पादन में महाराष्ट् के बाद दूसरे स्थान पर है। राज्य में 93 निजी क्षेत्र की और 24 कोआपरेटिव शुगर मिले है। इन चीनी मिलों ने उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादक किसानों की दशा और दिशा दोनों ही बदल कर रख दी है। गन्ना एक नगदी फसल बनी और गन्ना उत्पादन का रकबा दिन दूनी रात चैगुनी बढ़ने लगा है। आज उत्तर प्रदेश के 45 जिलों के लगभग 70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ना उगाया जा रहा है। यानी वर्ष 2000 से लेकर 2020 तक भारत में स्थापित 550 चीनी मिलों में से एक बड़ा भाग उत्तर प्रदेश के पास है।
आज गन्ना उत्पादक किसान हों या चीनी मिल मालिक या मिल कर्म चारी, सरकारी अधिकारी व कर्म चारी या अन्य सहउत्पादन से सम्बन्धित लोग...सभी शुगर केन इनफार्मेशन सिस्टम प्रणाली से जुड़े हुए हैं। इन सबका एक मोबाइल प्लेटफार्म है। उत्तर प्रदेश का चीनी उद्योग से लगभग 40 लाख किसान परिवार सीधे जुड़े हुए हैं। इसके अलावा व्यापारी, चीनी आढती, यातायातकर्मी, अनेक कंपनियां, बैंक, वित्तीय संस्थान के लोगों को भी शामिल कर लिया जाए तो यह संख्या पांच लाख से अधिक है, जिन्हें चीनी उद्योग रोजगार उपलब्ध करा रहा है।
चीनी मिलों पर पूरी तरह से सरकार का नियंत्रण हैं और पेराई सत्र से लेकर सत्र समाप्त होने के बाद तक गन्ना विभाग और उससे जुड़ी सहकारी समितियां लगातार काम करती रहती हैं। गन्ने की नवीनतम किस्मों पर रिसर्च आरंभ हुई और ऐसी किस्में आईं जिससे ज्यादा रस देने वाला गन्ना उत्पादित होने लगा। प्लांट टिशु कल्चर से गन्ने के पौधे लैब में बनने लगे।
गन्ने के पत्ते के टिषू से 5 से 10 लाख या उससे भी अधिक पौधे तैयार होने लगे,,,यानी कोई लिमिट ही नहीं। कम्प्यूटरीकरण से मिलों का सुरक्षात्मक ढांचा मजबूत हुआ और उनकी चीनी उत्पादन क्षमता बढ़ी। आज चीनी मिलें सल्फर और बिना सल्फर युक्त, पाउडर शुगर, ब्राउन शुगर, आइस शुगर, क्यूब शुगर ... सहित अन्य अनेक प्रकार की चीनी का उत्पादन कर रही हैं। वर्ष 2000 से आज का दौर जिसने समूचे चीनी उद्योग का भविष्य ही बदल दिया है। अब चीनी मिलों ने बगास यानी खोई से बिजली बनानी आरंभ कर दी है। चीनी मिलें अपनी आवश्यकता की बिजली इस्तेमाल करने के बाद अब उसे यूपी पॉवर कारपोरेशन को बेंच देती हैं।
मिले अपनी उत्पादित विद्युत का 40 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करके शेष यूपीपीसीएल को बेंच देती हैं। भारत विदेशों से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का आयात करता है जिस पर भारी विदेशी मुद्रा खर्च होती है। एथनाल उत्पादन ने प्रदेश ही नहीं देश को ताकत दी है। देश में इथेनाल उत्पादन वर्ष 2019-20 में 427 करोड़ लीटर था जिसका बड़ा भाग उत्तर प्रदेश में उत्पादित हुआ।
वर्ष, 2010 तक यह इथेनाल पेट्रोल में 5 प्रतिशत मिलाया जाता था, जिसे 2011 में बढ़ाकर 8 प्रतिशत किया गया और 2022 में यह इथेनाल समिश्रण 10 प्रतिशत हो गया है। माननीय प्रधानमंत्री लगातार इस बात पर जोर दे रहे है। कि एथनाल समिश्रण 2025 तक 20 प्रतिशत किया जाए। ऐसी स्थिति में एथनाल की मांग 2017 से 2021 तक 370 करोड़ लीटर थी वह 2022 से 2025 तक 1350 करोड़ लीटर हो जाएगी। यह बदलाव चीनी उद्योग को एक नई उचांई देगा और चूंकि उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादन सर्वाधिक होता है तो सबसे ज्यादा लाभ उत्तर प्रदेश को होगा।
विभाग के अधिकारी व कर्म चारी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने कोविड काल में अपनी महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिका अदा की। विभाग का हर स्थाई व गैर स्थाई कर्मचारी दिन रात लगा रहा कि मिलें बंद न होने पाएं नहीं तो खेतों में खड़ा लाखों टन गन्ना तबाह हो जाएगा और किसान भी बर्बाद हो जाएगा।
विभाग के अधिकारियों व कर्म चारियों व मिल मालिकों ने संयुक्त मेहनत कर आक्सीजन प्लांट लगाकर लोगों का जीवन बचाने का प्रयास किया और कोविड काल में प्रदेश की 57 चीनी मिल इकाईयों ने प्रतिदिन 6 हजार लीटर सेनेटाइजर का उत्पादन किया। कोविड काल में जब लोग अपने घरों में बैठे थे और सब कुछ बंद था तब भी उत्तर प्रदेश का चीनी विभाग और उसकी सहकारी समितियों में कार्यरत प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी की चीनी मिलों के संचालन में अपना योगदानदे रहा था।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि जब वे युवाओं को अपने विभाग में 16 से 18 हजार रूपए के वेतन पर दिन रात काम करते हुए देखते हैं तो दुख होता है। संविदा व ठेके के कर्मचारियों का जिस तरह से शोषण हो रहा है वह उचित नहीं है जबकि इन सभी ने मिलकर एक बार नहीं अनेक बाद सरकार को और मुख्यमंत्री जी को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान किया है।
रिपोर्ट- सुभाष विश्वकर्मा