Up Kiran, Digital Desk: बिहार में साइबर अपराधों के बढ़ते मामलों के पीछे की असल वजह अब धीरे-धीरे सामने आने लगी है। जहां आम जनता रोज़ नए-नए डिजिटल ठगी के जाल में फंस रही है, वहीं इसके पीछे काम कर रहे नेटवर्क की गहराई चौंकाने वाली है। राज्य में सैकड़ों ऐसे लोग पकड़े गए हैं जो बिना किसी वैध अनुमति के सिम कार्ड बेच रहे थे वो भी फर्जी पहचान पत्रों के सहारे।
100 से ज़्यादा सिम एक ही नाम पर!
जांच में पता चला है कि कई मामलों में एक ही व्यक्ति के नाम पर 100 से भी अधिक सिम कार्ड सक्रिय हैं। ये सिम कार्ड असली यूजर्स को नहीं, बल्कि अपराधी तत्वों को बेचे गए, जो इन्हें ठगी, ब्लैकमेलिंग और फर्जी कॉल करने जैसे अपराधों में इस्तेमाल कर रहे हैं।
टेलीकॉम विभाग की कार्रवाई ने खोले कई राज़
दूरसंचार विभाग ने जब इस गड़बड़ी की तह में जाने के लिए बायोमैट्रिक रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू की, तब जाकर पूरे राज्य में ऐसे लगभग 6,000 अवैध सिम विक्रेताओं की पहचान की गई। ये लोग न तो किसी टेलीकॉम कंपनी से अधिकृत थे और न ही इनके पास कोई लाइसेंस था। इसके बावजूद, ये खुलेआम सिम कार्ड बेच रहे थे।
अब हर सिम विक्रेता का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य
साइबर अपराधियों पर लगाम कसने के लिए अब टेलीकॉम कंपनियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि वे केवल उन्हीं दुकानदारों को सिम विक्रय की अनुमति दें, जो विधिवत पंजीकृत हों। सभी वैध विक्रेताओं को यूज़र आईडी और पासवर्ड जारी किया गया है, ताकि सिम कार्ड की बिक्री पर निगरानी रखी जा सके।
फर्जी कागज़ात से बिक रहे थे सिम कार्ड
मुजफ्फरपुर, गया, आरा और जहानाबाद जैसे जिलों में कई ऐसे विक्रेताओं को पकड़ा गया है जो ग्राहकों से फर्जी दस्तावेज लेकर सिम कार्ड जारी कर रहे थे। इनमें से कई विक्रेताओं ने एक ही व्यक्ति के नाम पर 100 से अधिक सिम कार्ड एक्टिवेट किए थे। विभाग अब राज्य भर में इस तरह के मामलों की छानबीन कर रहा है।
अब विक्रेताओं की लोकेशन पर रहेगी नज़र
रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के दौरान विक्रेताओं की मोबाइल लोकेशन भी दर्ज की गई है। इसका फायदा यह होगा कि अब यह आसानी से ट्रैक किया जा सकेगा कि किस विक्रेता ने किस समय, किसे सिम बेचा। इससे साइबर अपराधों की जांच में समय की बचत होगी और अपराधी तक पहुंचने में सहूलियत होगी।
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