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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में सरकारी रिकॉर्ड की लापरवाही एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार मामला कुछ ऐसा है कि आप चौंक उठेंगे। वैशाली ज़िले में एक बुजुर्ग व्यक्ति उस समय हैरान रह गया, जब उसे पता चला कि सरकारी दस्तावेज़ों में वह तीन साल पहले ही मर चुका है – जबकि असलियत में वह बिल्कुल स्वस्थ है और अपनी पेंशन लेने बैंक पहुँचा था।

यह हैरान करने वाला मामला लालगंज के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा से जुड़ा है। जब मथुरापुर कुशदे गाँव निवासी नित्यानंद सिंह, जो शारीरिक रूप से अक्षम और दृष्टिहीन हैं, हाल ही में बढ़ी हुई पेंशन (₹1100 प्रति माह) निकालने के लिए बैंक पहुँचे, तो वहाँ मौजूद कर्मचारियों ने उन्हें जानकारी दी कि उनका खाता निष्क्रिय हो चुका है और केवाईसी अपडेट करना अनिवार्य है।

"मौत" की खबर खुद को नहीं थी!

बैंक की सलाह पर उन्होंने केवाईसी प्रक्रिया पूरी की और खाता सक्रिय भी हो गया। लेकिन जब खाते में पेंशन नहीं दिखी, तो बैंककर्मियों ने उन्हें प्रखंड कार्यालय से समन्वय करने की बात कही। यहीं से कहानी ने एक अजीब मोड़ लिया। जब नित्यानंद अपने भतीजे के साथ प्रखंड कार्यालय पहुँचे, तो अधिकारियों ने उन्हें बताया कि वे तो तीन साल पहले ही दिवंगत घोषित हो चुके हैं – और इसी वजह से उनकी पेंशन बंद कर दी गई है।

"जिंदा हूँ, साहब!" – मगर कोई मानने को तैयार नहीं

नित्यानंद सिंह ने अधिकारियों को आश्वस्त करने की कोशिश की कि वे जीवित हैं, लेकिन उन्हें इस बात पर विश्वास दिलाना आसान नहीं था। सरकारी कागज़ों में जब कोई मृत घोषित हो जाए, तो उसे "जिंदा" साबित करने की प्रक्रिया एक नई ही मुसीबत बन जाती है।

अब पिछले पंद्रह दिनों से यह बुजुर्ग प्रशासनिक दफ्तरों के चक्कर काट रहा है – कभी मृत्यु प्रमाण रद्द करवाने के लिए, तो कभी जीवित प्रमाण पत्र के लिए। एक जीवित व्यक्ति को बार-बार यह सिद्ध करना पड़ रहा है कि वह वाकई ज़िंदा है।

सिस्टम की चूक, आम जनता की पीड़ा

यह पहली बार नहीं है जब सरकारी मशीनरी की गलती आम लोगों पर भारी पड़ी है। नित्यानंद सिंह तो बस एक नया नाम हैं उस लंबी सूची में, जहाँ जीते-जागते इंसानों को कागज़ों पर मृत घोषित कर दिया गया। सवाल यह है कि इस तरह की लापरवाहियों का कोई हल कब निकलेगा?

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