Party Politics: क्या अखिलेश यादव को रास आएगा ये गठबंधन या फिर…

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लखनऊ। देश के पांच राज्यों में चुनाव का बिगुल बज गया। प्रमुख दलों ने चुनावी रण में अपने प्रतिद्वंदी दलों को पटकनी देने के लिए रणनीतियां (Party Politics) बनानी शुरू कर दी है। इसके लिए जहां बैठकों पर जोर दिया जा रहा है वहीं छोटे दलों के साथ गठबंधन का सिलसिला भी शुरू कर दिया गया है। पूरे देश की निगाह चुनाव वाले राज्यों पर तो है परन्तु उत्तर प्रदेश पर खास निगाह लगी हुई है। इसका कारण भी है। जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें सर्वाधिक विधानसभा की सीटें उत्तर प्रदेश में ही हैं। (real clear politics)Party Politics- Yogi -Akhilesh

प्रत्याशी घोषित करने के लिए मंथन जारी

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), कांग्रेस सहित अन्य दलों के बीच शतरंज बिसात बिछ चुकी हैं और अपने-अपने हिसाब से गोटियां चली जा रही हैं। चूंकि चुनाव की घोषणा कुछ ही दिन पहले हुई है, इसलिए किसी भी दल ने अपने प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं इस लेकिन प्रत्याशी घोषित करने के लिए मंथन जारी है। बसपा ने कुछ विधानसभा सीटों के लिए प्रभारी पहले ही घोषित कर रखा है। अमूमन विधानसभा सीट पर प्रभारी ही बसपा का प्रत्याशी उस सीट के लिए होता है। विशेष परिस्थितियों में ही ऐन वक्त पर कुछ सीटों पर बसपा ने अपने प्रत्याशी बदले भी हैं बीते चुनावों में इस तरह के उदाहरण देखे भी जा सकते हैं, जहां बसपा ने ऐन वक्त पर अपने घोषित प्रत्याशी बदल दिए। (Party Politics)

दल-बदल का सिलसिला और तेज होने की प्रबल संभावना

चुनाव की घोषणा होने के बाद विभिन्न दलों में भगदड मची हुई है। अपने राजनैतिक भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक दूसरे दल में आने-जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। सर्वाधिक टूटन बसपा में हुई है। इस पार्टी के कई नेता भाजपा, सपा और कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। भाजपा, सपा और कांग्रेस के कई नेता और कार्यकर्ता यहां तक की विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य भी दल बदल चुके हैं। यह सिलसिला अभी जारी है। प्रत्याशियो की घोषणा होने के बाद दल-बदल का सिलसिला और तेज होने की प्रबल संभावना है। (Party Politics)

दल-बदल का सबसे अधिक झटका भाजपा को

दल-बदल का सबसे अधिक झटका भाजपा को लगा है। योगी मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये हैं । इसी के साथ ही भाजपा के तीन विधायक कानपुर जिले के बिल्लौर से विधायक भगवती प्रसाद सागर, शाहजहांपुर जिले की तिलहर से विधायक रोशनलाल वर्मा और बांदा जिले की तिन्दवारी से विधायक ब्रजेश प्रजापति ने भी भाजपा से इस्तीफा दे चुके हैं। इनके भी जल्दी ही सपा में शामिल होने की उम्मीद है। ये विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य को अपना नेता बता रहे हैं। (real clear politics)

जाहिर सी बात है कि जहां नेता रहेगा वहां उसके समर्थक रहेंगे ही। निकट भविष्य में भाजपा के 50 से अधिक विधायक पार्टी छोड़ने की फिराक में हैं। वे प्रत्याशी घोषित होने का इन्तजार कर रहे हैं। भाजपा में इस बार एक तिहाई तक विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चा है। स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघप्रिय मौर्य भाजपा से लोकसभा सदस्य हैं। अब उन पर पार्टियों की निगाहें लगी हैं कि वे भी अपने पिता के पदचिन्हों का अनुसरण करेंगी या पार्टी में बनीं रहेगी। ज्यादा चर्चा देरसबेर पार्टी छोड़ने की है। (real clear politics)

स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद भाजपा सतर्क

हालाँकि स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद भाजपा सतर्क हो गई है और डैमेज कंट्रोल की कोशिशों में जुट गई है। उसकी निगाह अपने अन्य विधायकों और मंत्रियों पर टिक गई है। खासतौर से उन पर जो अन्य दलों से आकर भाजपा में शामिल हो विधायक और फिर मंत्री बन गये हैं। मौर्य ने भाजपा उस समय इस्तीफा दिया जब पार्टी के वरिष्ठ नेता दिल्ली में प्रत्याशी चयन के मामले पर बैठक कर रहे थे। यहां लखनऊ में पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता था ही नहीं। (real clear politics)

सर्वाधिक भीड़ सपा मुख्यालय पर

प्रत्याशी चयन के मामले में सबसे अधिक कठिनाई सपा और भाजपा के समक्ष है। इन्हीं दोनों दलों में एक-एक सीट के लिए कई-कई दावेदार हैं। दोनों ही दलों के प्रदेश पार्टी मुख्यालय पर टिकटार्थियो और उनके समर्थकों की हो रही है। सर्वाधिक भीड़ सपा मुख्यालय पर हो रही है। सपा मुख्यालय का नजारा यह है कि पार्टी के मुख्य गेट पर ताला लगा होता है। टिकट के दावेदार अपने नाम की चिट अंदर भेजते हैं और वरिष्ठ नेता खासतौर से अखिलेश यादव जिसे चाहते हैं उसी का प्रवेश होता है। शेष लोग अपने बुलावे की आस में गेट पर ही इन्तजार करते रहते हैं।(Party Politics)

छोटे-मोटे कई दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी रण में उतरने की तैयारी

समाजवादी पार्टी छोटे-मोटे कई दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी रण में उतरने की तैयारी में है। अबतक सपा का प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा), राष्ट्रीय लोकदल (रालोद), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सभासपा), महान दल, जनवादी पार्टी (संजय चौहान), अपना दल (कृष्णा पटेल) से गठबंधन हो चुका है। प्रसपा के मुखिया शिवपाल सिंह यादव हैं, जो सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भाई और अखिलेश यादव के चाचा हैं। पिछले चुनाव में अपनी उपेक्षा से तंग आकर सपा से अलग हो गये थे। इसका असर 2017 में हुए विधानसभा चुनाव पर विपरीत असर पड़ा। समाजवादी परिवार के अलग-अलग चुनाव लड़ने से सीटें काफी घट गई। (real clear politics)

प्रसपा में शिवपाल के अलावा अन्य कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका। सपा का जयंत चौधरी के नेतृत्व वाले रालोद से हुए गठबंधन का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पड़ने की संभावना है। चौधरी चरण सिंह के समय रालोद का असर नौ हिन्दीभाषी राज्यों में अच्छा-खासा था। अपने प्रभाव वाले राज्यों में रालोद सरकार बनाने और गिराने की हैसियत में था लेकिन चौधरी अजित सिंह के पार्टी मुखिया बनने के बाद रालोद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ विधानसभा क्षेत्रों तक सिमट गया है। (Party Politics)

रालोद को करीब 40 सीट मिलने की उम्मीद

अब चौधरी अजित सिंह के बेटे चौधरी जयंत सिंह रालोद के मुखिया हैं। उनके नेतृत्व में रालोद का यह पहला चुनाव मैदान में उतरने का अवसर है। सपा से रालोद को करीब 40 सीट मिलने की उम्मीद है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर हैं। वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के एक घटक थे। राजभर खुद योगी मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री थे। वरिष्ठ मंत्री होते हुए भी वे विभिन्न मुद्दों को लेकर अपनी ही सरकार पर लगातार हमला करते रहे। (real clear politics)

इसका असर यह हुआ कि मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। तबसे राजभर भाजपा विरोधी हो गए। शुरुआत में ओसैसुद्दीन उबैशी से गठबंधन करना चाहते थे लेकिन वहां उनकी बात बनी नहीं तब सपा की शरण में चले गए। इन्हें सपा से आठ सीटें मिलने की उम्मीद है। सपा से गठबंधन करने वाले अन्य छोटे-मोटे दलों के सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने की संभावना है। (Party Politics)

अखिलेश यादव का राजनीति में उदय वर्ष 2012 के चुनाव में हुआ। इससे पहले उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार थी। अखिलेश ने उस समय आज की परिवर्तन यात्रा की तर्ज पर पूरे प्रदेश में खुद रथयात्रा निकाली थी। उन रथयात्राओ में अखिलेश बेरोजगारो को रोजगार लगने तक तीन हजार बेरोजगारी भत्ता देने का वादा कर रहे थे। इस वादे ने युवकों, महिलाओं समेत अन्य बेरोजगारो को काफी लुभाया। इस वादे का असर यह रहा कि सपा ने 224 सीटों पर बाजी मार ली। (real clear politics)

बसपा को मात्र 19 और भाजपा को 47 सीटों ही संतोष करना पड़ता। सपा ने सरकार तो बना ली और शुरुआती दौर में बेरोजगारी भत्ता मिला भी लेकिन राजकोष पर बढ़ते बोझ को देख बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए कई समस्याये जुडती गई। इसका परिणाम यह हुआ कि सपा से बेरोजगारो का मोह भंग हो गया। इसे सपा मुखिया के तौर पर पहले ही भाप लिया। (Party Politics)

वर्ष 2017 में हुए चुनाव में कांग्रेस से चुनावी गठबंधन 

फिर से सत्ता पाने के लिए उन्होंने वर्ष 2017 में हुए चुनाव में कांग्रेस से चुनावी गठबंधन किया और नारा दिया- ‘यूपी को ये साथ पसंद है’ लेकिन इस नारे पर पहले की तरह मतदाताओं ने भरोसा नहीं किया। उधर समाजवादी परिवार में बिखराव हो गया। मुलायम सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव हार गए और अखिलेश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। इसका संदेश भी मतदाताओं में गलत गया। मतगणना मे सपा को मात्र 47 सीटें, कांग्रेस को नौ, बसपा को 19 सीटें मिलीं। इस चुनाव में भाजपा को पहली बार 312 और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 325 सीटें मिलीं। (real clear politics)

विधानसभा चुनाव के दो वर्ष बाद 2019 में लोकसभा के चुनाव हुए। विधानसभा के चुनाव नतीजों से सपा अध्यक्ष अखिलेश सशंकित थे। उन्होने चुनाव में बाजी मारने और भाजपा को रोकने के लिए स्टेट गेस्ट हाऊस कांड के बाद पहली बार बसपा से चुनावी गठबंधन किया। समझौते उन्होंने बसपा को सपा से अधिक 38 सीटें मिलीं। सपा खुद ने 37 सीटें ली। इस बार सपा का कांग्रेस से गठबंधन नहीं हुआ। कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लडी। भाजपा ने अपना दल (सोनेलाल पटेल) के साथ मिलकर चुनाव लडा। (Party Politics)

भाजपा के खाते में 78 और अपना दल के खाते में दो सीटें आई। भाजपा ने तब 62 सीटों और अपना दल ने अपनी दोनों सीटें जीत ली। इस चुनाव मे सपा मात्र पांच सीटों पर ही जीत मिल सकी। बसपा को दस सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस को सोनिया गांधी की रायबरेली एक मात्र सीट पर ही सफलता मिल पाई। इस प्रकार अखिलेश यादव ने अपने नेतृत्व में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में दो बार दो दलों से गठबंधन किया और दोनों ही बार उन्हें सफलता नहीं मिली। (Party Politics)

इस बार उपरोक्त दलों के अलावा सपा का ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस और शरद पंवार की नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से भी गठबंधन है। समझौते में दोनों को एक-एक सीट मिली है। उधर कांग्रेस का किसी दल से समझौता नहीं हो पाया है। वह अपने दम पर चुनाव मैदान में है। कांग्रेस ने 125 प्रत्याशियों और रालोद ने भी अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। (real clear politics)

इस बार के चुनाव में सपा अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है। उसे इस बार के गठबंधन, योगी सरकार के प्रति कथित नाराजगी पर भरोसा है। सपा ने इस बार के चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए 300 यूनिट बिजली फ्री देने का वादा किया है। सपा का गठबंधन पर भरोसा, योगी सरकार के प्रति मतदाताओं की कथित नाराजगी और 300 यूनिट बिजली फ्री देने का वादा चुनाव पर कितना असर डालेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। (Party Politics)

Big Announcement Today: उत्तर प्रदेश की जनता को मुफ्त मिलेगी 300 यूनिट बिजली- Akhilesh Yadav

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