देश में कोरोना वैक्सीन को लेकर सियासत सरगर्म है। सत्ता पक्ष और विपक्ष आपस में उलझे हुए हैं। समाचार चैनलों की बहसों ने इसे और विद्रूप कर दिया है। कोरोना वैक्सीन को लेकर सियासत की शुरुआत पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ही की थी।
भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में मतदाताओं को मुफ्त में कोरोना टीका देने की बात कही थी। इसका उसे भरपूर फायदा भी मिला। इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने तीसरे फेज का ट्रायल पूरा हुए बिना ही वैक्सीन को मंजूरी दे दी। विपक्ष स्वदेशी वैक्सीन की मंजूरी पर सवाल उठा रहा है।चिकित्सक व महामारी विज्ञानी भी चिंता जता रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार इस तरह के सवालों को सियासत ही करार दे रही है।
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि आम जनता की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए विपक्ष को आवाज उठानी ही चाहिए। सरकार अगर सही से काम नहीं कर रही है तो, उस पर सवाल उठेंगे ही। संविधान ने राजनितिक दलों को ये अधिकार दिया है। हालांकि विपक्ष को भी वैक्सीन जैसे अहम मसले पर गंभीरता दिखानी चाहिए। यदि लोगों के मन में वैक्सीन को लेकर अविश्वास हुआ तो फिर टीकाकरण अभियान चुनौतियों से घिर जाएगा।
स्वदेशी वैक्सीन को लेकर सरकार को भी अति उत्साह से बचना चाहिए। लोगों का भरोसा बनाए रखना सरकार की अहम जिम्मेदारी है। सावधानी व सुरक्षा भी आवश्यक है। इसके साथ ही पारदर्शिता भी बेहद जरुरी है। सरकार को बताना चाहिए कि सुरक्षित ट्रायल के बिना वैक्सीन को मंजूरी क्यों दी गई है? सरकार को ऐसे अहम सवालों के ठोस जवाब देने चाहिए। प्रधानमंत्री को इसपर एक सर्वदलीय बैठक बुलाकर प्रमुख नेताओं से कोरोना संक्रमण, मंजूर की गई दोनों वैक्सीन और सरकार की रणनीति पर विमर्श करना चाहिए। इससे तंत्र में लोगों का भरोसा और मजबूत होगा।