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क्रांतिकारी स्वभाव के कारण सुभाष चंद्र बोस की लोकप्रियता में गुणात्मक रूपसे वृद्धि हो रही थी। वह देश के यवाओं के नायक बन चुके थे। सुभाष चंद्र बोस ने 1938 (हरिपुरा, गुजरात) कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता 41 वर्ष की आयु में सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गये। सुभाष ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि स्वाधीनता की राष्ट्रीय मांग एक निश्चित समय के अंदर पूरी करने के लिए ब्रिटिश सरकार के सामने रखी जाए और ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्धारित अवधि में मांग पूरी नही करने पर सविनय अवज्ञा शुरू कर देनी चाहिए।

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तत्कालीन कांग्रेस कार्य समिति में दक्षिण पंथी सदस्यों का बहुमत था और वे सुभाष के क्रांतिकारी विचारों से सहमत नहीं थे। उन्होंने सुभाष बाबू के साथ असहयोग की नीति अपनाई। इन्हीं परिस्थितियों में अगला कांग्रेस अधिवेशन 1939 में (त्रिपुरी, मध्य प्रदेश) में प्रस्तवित हुआ था, जिसमे सुभाष चंद्र बोस ने पुनः कांग्रेस अध्यक्ष के लिए दावेदारी पेश की। राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी और सरदार पटेल आदि ने उनकी दावेदारी का विरोध किया तथा पट्टाभि सीतारमैया को अपना उम्मीदवार घोषित किया। सीता रमैया को गांधीजी का भी समर्थन प्राप्त था।

सुभाष चंद्र बोस ने 1377 के मुकाबले 1580 मत लेकर जीत दर्ज की । उनकी इस जीत पर गांधी जी ने कहा कि ‘यह सीतारमैया से अधिक मेरी हार है।’ इसके बाद कांग्रेस कार्यसमिति के 14 में से 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। सिर्फ पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा शरद बाबू साथ बने रहे। ऐसी परिस्थिति में 29 अप्रैल, 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने त्याग पत्र दे दिया।

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कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने 22 जून को 1939 में कांग्रेस के अन्दर ही ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ के नाम से अपनी पार्टी का गठन किया। कुछ दिन बाद सुभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। इसके बाद फॉरवर्ड ब्लॉक अपने आप एक स्वतंत्र पार्टी बन गई। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले से ही फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक तीव्र करने के लिये जन जागृति शुरू कर दी थी।

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