हिंदी साहित्य में अधिकतर प्रेमाख्यानों में सावन के महीने में प्रकृति की सुंदरता का बखान किया गया है। इस सुंदरता में नायक तथा नायिका विह्वल हो उठते हैं। इसलिए सावन में हरे रंग के परिधान पहनने की परंपरा है। हरा रंग पहनकर हम प्रकृति के प्रति अपना आभार भी व्यक्त करते हैं। महिलायें हरे रंग के वस्त्र व चूड़ियां पहनती हैं। कलाइयों में हरे रंग की मेहंदी रचाती हैं। बालों में फूलों का गजरा लगाती हैं। कुवांरी लडकियां मनचाहा वर पाने के लिए सावन में विशेष श्रृंगार करती हैं।
हरा रंग वैवाहिक जीवन में खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है इस माह में हरा रंग किसी भी रूप में धारण करने से मानव का सौभाग्य में वृद्धि होती है और उसको भगवान शिव की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है। सावन मास में मंदिरों और उसमे स्थापित देवी-देवताओं का भी विशेष श्रृंगार किया जाता है। मथुरा और वृन्दावन के मंदिरों का श्रृंगार तो देखते ही बनता है। सावन के महीने में नीम के पेड़ पर पड़े झूले और कजरी गीत पूरे वातावरण का श्रृंगार करते हैं।
खेतिहर समाज के लिए सावन मास सबसे अहम होता है। किसान जब अपने खेतों में धान की फसलों को झूमते हुए देखता है, तो वह सहज ही विहंस उठता है। बागों में पौधे रोपता है, सांपों की पूजा करता, जिससे प्रकृति का श्रृंगार होता है। सावन मास में किसान शेष बारह महीनों का भी श्रृंगार करता है। सावन मास में गावों में अखाड़े भी सजते हैं, जिसमे युवाओं के शरीर की पौष्टिकता का मिटटी से श्रृंगार किया जाता है।