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Up Kiran, Digital Desk: तीन साल से चल रही रूस और यूक्रेन के बीच की जंग अब सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं रही। धीरे-धीरे यह टकराव पूरे यूरोप की सुरक्षा को चुनौती देने लगा है। युद्ध की शुरुआत में शायद रूस ने सोचा होगा कि कुछ ही हफ्तों में यूक्रेन घुटने टेक देगा, लेकिन यूरोपीय देशों की मदद से यूक्रेन अब भी डटा हुआ है। इस लड़ाई में अब एक नया मोड़ आ गया है—जर्मनी को डर सता रहा है कि रूस भविष्य में उस पर भी हमला कर सकता है। यही वजह है कि जर्मनी अब युद्ध की तैयारी में जुट गया है और तेज़ी से बंकर और सुरंगें बनवाने लगा है।
क्या रूस वाकई जर्मनी पर हमला कर सकता है?
युद्ध विशेषज्ञ और सुरक्षा एजेंसियां इस सवाल का जवाब 'हां' में देने लगी हैं। जर्मनी के फेडरल सिविल प्रोटेक्शन ऑफिस के प्रमुख राल्फ टेसलर ने हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा कि अब वह समय नहीं रहा जब यह माना जाता था कि जर्मनी को कोई खतरा नहीं है। अब जर्मन सरकार यह मानकर चल रही है कि यूरोप में एक बड़ा युद्ध छिड़ सकता है, और वह भी जल्द।
टेसलर के मुताबिक, जर्मनी की रणनीति अब महज सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के अंदर भी नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। यही कारण है कि नए बंकरों का निर्माण और पुराने बंकरों की मरम्मत पर खास ध्यान दिया जा रहा है।
युद्ध की तैयारी: जर्मनी का बड़ा कदम
जर्मनी के चीफ ऑफ डिफेंस जनरल कार्सटन ब्रूअर ने BBC को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि जर्मनी अब हर साल सैकड़ों नए टैंक बना रहा है। उनकी तैयारी यह है कि अगर 2029 तक NATO देशों पर हमला होता है, तो उनके पास पर्याप्त सैन्य संसाधन मौजूद हों।
इसके साथ ही, जर्मनी में अब बंकर बनाने पर भी फोकस है। मेट्रो स्टेशनों के नीचे बने अंडरग्राउंड शेल्टर, कार पार्किंग्स को मजबूत बेसमेंट में बदला जा रहा है और पब्लिक शेल्टर का निर्माण भी तेज़ी से हो रहा है। लेकिन यह काम आसान नहीं है—इसमें समय भी लगेगा और खर्च भी भारी होगा।
कितनी है जर्मनी की तैयारी?
वर्तमान में जर्मनी के पास 2,000 बंकर हैं, लेकिन इनमें से केवल 600 ही अच्छी स्थिति में हैं।
अभी तक सिर्फ 4.8 लाख लोगों के छिपने की व्यवस्था है, जबकि आबादी करोड़ों में है।
तुलना करें तो फिनलैंड के पास 50,000 से ज्यादा प्रोटेक्शन रूम हैं, जहां 48 लाख लोग एक साथ रुक सकते हैं।
जर्मनी अब लक्ष्य बना रहा है कि कम से कम 10 लाख लोगों के लिए सुरक्षित स्थान बनाए जाएं। इसके लिए न केवल सरकार बल्कि आम लोगों और निजी कंपनियों की भी मदद ली जाएगी।
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