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Up Kiran, Digital Desk: क्या आपने कभी सोचा है कि जब इंसानों के स्वार्थ से जंगल और जंगली जीव खतरे में आते हैं, तो उन्हें कौन बचाता है? भारत की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज जिम कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व (Jim Corbett Tiger Reserve) को बचाने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण और कड़ा निर्देश दिया है! यह फैसला दिखाता है कि हमारे देश में प्रकृति और वन्यजीवों की सुरक्षा को कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है. कोर्ट ने साफ़ तौर पर 'बहाली' (Restoration) और 'इको-टूरिज्म' (Eco-tourism Measures) उपायों को तुरंत लागू करने का आदेश दिया है, ताकि इस विश्व-प्रसिद्ध बाघ अभयारण्य (Tiger Reserve) को अवैध गतिविधियों और अतिक्रमण से बचाया जा सके.

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व: क्यों पड़ी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की ज़रूरत?

जिम कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व भारत के सबसे पुराने और सबसे प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है. यह उत्तराखंड में स्थित है और बाघों, हाथियों, और अन्य वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों का घर है. लेकिन पिछले कुछ समय से यह टाइगर रिज़र्व कई विवादों में घिरा हुआ था. आरोप थे कि कुछ लोगों और अधिकारियों ने अपने स्वार्थ के लिए रिज़र्व के अंदर अवैध निर्माण और अतिक्रमण कर रखा है. ये गतिविधियां जंगल के पर्यावरण और वहाँ रहने वाले जंगली जानवरों के लिए बड़ा खतरा बन चुकी थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझा और केंद्र व राज्य सरकार को तुरंत सख्त कदम उठाने का आदेश दिया है.

कोर्ट के निर्देश और उनके मायने

  1. बहाली के उपाय (Restoration Measures): इसका मतलब है कि टाइगर रिज़र्व में हुए किसी भी अवैध निर्माण, जैसे रिसॉर्ट्स, रेस्टोरेंट या अन्य ढांचों को तुरंत हटाना होगा. जंगल को उसके मूल और प्राकृतिक स्वरूप में वापस लाया जाएगा.
  2. इको-टूरिज्म को बढ़ावा (Promote Eco-tourism): कोर्ट ने यह भी कहा कि टाइगर रिज़र्व में पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए, लेकिन यह 'इको-टूरिज्म' के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए. इसका मतलब है कि पर्यटन पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना, स्थानीय समुदायों को लाभ पहुँचाते हुए और वन्यजीवों को शांतिपूर्ण माहौल प्रदान करते हुए होना चाहिए. मास टूरिज्म (mass tourism) को हतोत्साहित किया जाएगा.
  3. प्रदूषण नियंत्रण: कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि प्रदूषण को कम करने के लिए उपाय किए जाएं.

यह सुप्रीम कोर्ट का एक मील का पत्थर साबित होने वाला फैसला है, जो भारत के अन्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा. यह सरकारों को प्रकृति के संरक्षण के लिए और ज़्यादा जवाबदेह बनाएगा. अब देखना यह होगा कि इस आदेश का कितनी तेज़ी से और प्रभावी ढंग से पालन किया जाता है.