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आईये जानते हैं कि कैसे बादल पहाड़ों का दुश्मन बनता जा रहा है। 10 जुलाई को कुल्लू की घाटी में बादल फटा। 17 जुलाई को कुल्लू के खराहल में, 19 जुलाई को चंबा के सलूणी में बादल फटा तो 20 जुलाई को किन्नौर की सांगला वैली में। 21 जुलाई मंडी के जोगिंदरनगर में 21 जुलाई को कुल्लू के मनाली में, 21 जुलाई को ही शिमला के रोहड़ू में बादल फटा।

25 जुलाई को कुल्लू की गड़सा वैली में, इसके अलावा 14 अगस्त को कांगड़ा और 14 अगस्त को ही मंडी में दो जगह बादल फटा। फिर 14 अगस्त को शिमला और 14 अगस्त को ही सोलन में बादल फटने की घटनाएं देखने को मिली। मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है।

बादल फटने की घटनाएं 1 से 10 किलोमीटर के दायरे में मौसमी बदलाव की वजह से होती है। लिहाजा इनका पूर्वानुमान लगा पाना मुश्किल होता है। जानकारों के मुताबिक रडार से एक बड़े एरिया के लिए बहुत भारी बारिश का पूर्वानुमान तो लगाया जा सकता है, लेकिन किस इलाके में बादल फटेंगे ये बता पाना करीब करीब नामुमकिन होता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में हिमाचल से लगातार ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जो लोगों को डरा रही हैं।

सवाल भी खड़े कर रही है। कि आखिर कुदरत हिमाचल से इतना बैर क्यों निकाल रही है। इस सवाल का जवाब जानने से पहले आपको ये पता होना चाहिए कि आखिर बादल फटना होता क्या है।

मौसम विभाग के मुताबिक जब बादल भारी मात्रा में नमी यानी पानी लेकर चलते हैं और उनके राह में कोई बाधा आ जाती है तब वे अचानक फट पड़ते हैं। इन हालात में एक सीमित इलाके में कई लाख लीटर पानी एक साथ धरती पर गिरता है, जिससे कुछ देर के लिए तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है और जब ये पानी पहाड़ से ऊपर से नीचे की तरफ आता है तो इसका वेग इतना प्रचंड होता है कि जो कुछ भी इसके रास्ते में आता है वो उसे अपने साथ बहा ले जाता है। ऐसे ही हालात आजकल हिमाचल में देखने को मिल रहे।

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