
बीमारी की पहचान ही उसका सबसे बड़ा इलाज है, क्योंकि अगर जब तक बीमारी का पता नहीं चलता तो उसका इलाज संभव नहीं है. हालांकि कई ऐसी बीमारियां आज भी मौजूद है जिनका इलाज संभव नहीं है लेकिन सावधानी बरतने से इनसे बचा ज़रूर जा सकता है. एचआईवी एड्स भी ऐसी बीमारी है, जिससे सावधानी रखने में ही भलाई है। लेकिन क्या पता इस बीमारी का पता कैसे चला? तो चलिए हम आपको बताते है.
जी हाँ! आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत ने एचआईवी के लक्षण को आज से 33 साल पहले ही भांप लिया था। चेन्नई की डॉ सुनीति सोलोमन ने एचआईवी पर जो रिर्सच की थी, वो विज्ञान की दुनिया के लिए एक वरदान था।
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दरअसल, सुनीति मद्रास मेडिकल कॉलेज की तरफ से 100 सेक्स वर्करो पर एक रिर्सच कर रही थी। उसी दौरान उन्हें एचआईवी से संक्रमित लोगों के बारे में पता चला। तब सेक्स वर्कर पर शोध के दौरान 100 में से 6 लोगों को यह बीमारी थी। डॉ सुनीति को इस वायरस की समझ तीन दशक पहले हो गई थी।लेकिन सरकार ने उनकी इस खोज को बेबुनियाद बता दिया था, इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने जांच के नमूनों को अमेरिका भेजा, जहां उनके परीक्षण को हरी झंडी मिली।
वहीँ बताया जाता है कि सुनीति को इस खोज के बाद भारी विरोध का सामना करना पड़ा।1993 में उन्होंने ‘वाई आर गायतोंडे केयर फाउंडेशन’ की स्थापना की और अपने रिर्सच को जारी रखा। यह उनकी खोज और मेहनत का ही नतीजा है कि आज भारत एचआईवी से लड़ने में कुछ हद तक कामयाब हो पाया है। इस रिसर्च में सुनीति के साथ पूर्व सेक्स वर्कर नूरी ने भी बहुत सहयोग किया था।
आपको बता दें कि पूर्व सेक्स वर्कर एस नूरी ने इस मामले में डॉ. सुनीति की बहुत सहायता की है। अपने इंटरव्यू में नूरी ने कहा था कि ‘जब मैं डॉ सुनीति मिली, तो मैंने उनकी सहायता का फैसला लिया और हमने मिलकर इसपर जागरुकता फैलाई ताकि लोग इसपर ज्यादा से ज्यादा बात करें।‘ नूरी के अनुसार सुनीति का काम वाकई काबिले तारीफ है। नूरी ने कहा, ‘उन्होंने जो किया वो हम सब के लिए वरदान है और इसके लिए हमें उनको धन्यवाद देना चाहिए’
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