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यूरोपीय देश हिंसा, धमाकों और दंगों से जूझ रहे हैं। यह सिलसिला काफी वक्त से चला आ रहा है। अब मामला इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि पैरिस में सरेआम दंगे फसाद हो रहे हैं और सरकार लाचार है। यूरोप में इस्लामिक रेडिकलाइजेशन के मामले सबसे ज्यादा रिपोर्ट होने लगे हैं। जबसे मिडल ईस्ट और खासकर आईएसआईएस के आतंक से लोग सीरिया से भागकर शरण लेने यूरोप पहुंचे हैं।

आंकड़े बताते हैं कि जिन देशों में रिफ्यूजियों की संख्या हाल के सालों में बढ़ रही है, वहीं पर सबसे ज्यादा रेडिकलाइजेशन के मामले भी देखने को मिल रहे हैं। ऐसे में पोलैंड के नेता व मंत्री खुलेआम यह कहते हैं और गर्व से कहते हैं कि वह अपने देश के नागरिकों की जान बचाने के लिए एक भी रिफ्यूजी नहीं लेंगे। साथ में यह भी कहते हैं कि यूक्रेन से आए शरणार्थियों को जगह दी है, लेकिन इस्लामिक मुल्कों से आए लोगों को पनाह नहीं देंगे।

इस राजा की पोलैंड में होती है पूजा

यही कारण है कि हाल ही के सालों में पौलेंड में न तो आतंकी हमले हुए और न ही दंगा। फ्रांस जिसने सबसे ज्यादा रिफ्यूजी लिए थे, वह यह सब भुगत रहा है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे राजा का किस्सा बताने जा रहे हैं जिन्होंने आज से लगभग 350 साल पहले ही इन खतरों को भांप लिया था और इस्लाम का परचम यूरोप पर लहराने नहीं दिया गया था। हम बात कर रहे हैं पौलेंड के किंग जॉन की की और विएना के युद्ध की। पोलैंड में आज भी किंग जॉन की को पूजा जाता है।

खासतौर से हाल ही के सालों में हुई घटनाओं के बाद से। यह भी कहा जाने लगा है कि किंग जॉन दूरदर्शी थे, जिन्होंने 1683 में ही सिर उठाते हुए तुर्कों को विस्तार नहीं करने दिया और इस्लाम को वहां नहीं आने दिया गया। कहानी है वियना युद्ध की, जो 14 जुलाई 1683 से 12 सितंबर 1683 तक चला। युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य को हार मिली थी। यह युद्ध रोमन साम्राज्य और पोलिश यूनियन कॉमनवेल्थ ने पोलैंड के राजा जॉन सेवेज की मृत्यु के नेतृत्व में ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ लड़ा था। यह पहला मौका था जब रोमन एंपायर और कॉमनवेल्थ की सेना मिलकर लड़े थे।

इस युद्ध से पहले तुर्कों की ऑटोमन सेना यूरोप में विस्तार किए जा रही थी लेकिन इस युद्ध में मिली हार से ऑटोमन एम्पायर की कमर तोड़कर रख दी। इसके बाद यूरोप में कभी पैर नहीं जमा पाए। कहा जाता है कि ऑटोमन हमेशा से वियना पर कब्जा करना चाहते थे क्योंकि यह शहर पूर्वी मेडिटेरियन और जर्मनी के ट्रेड रूट पर पकड़ बनती थी। हालांकि ऑटोमन के कब्जे के बाद इस पूरे मामले को बाद में ईसाई बनाम इस्लाम की लड़ाई के तौर पर भी देखा गया। यह भी कहा जाता है कि यह पहला मौका था जब इस्लाम के खिलाफ कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट एकजुट होकर लड़ाई लड़ रहे थे।

एक तरफ ऑटोमन साम्राज्य के झंडे के तले पांच सेनाएं थी तो दूसरी तरफ पोलैंड के झंडे के तले करीब दर्जनभर सेनाएं थी। ऑटोमन के पास डेढ़ लाख की फौज थी, जो किंग जॉन के पास करीब 90000 की फौज। उसमें भी कुछ कम ही थे। इतिहासकारों की मानें तो साल 1299 में शुरू हुए ऑटोमन साम्राज्य की यह सबसे बुरी हार थी, जिसमें उसके करीब 20,000 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे। उसके बाद भी जंग छिटपुट तरीके से जारी रही। बाद में ऑटोमन ने हंगरी और ट्रांसिल्वेनिया का भी कंट्रोल खो दिया। इसके बाद ही ऑटोमन यूरोप से उखड़ गए। किंग की जीत का जश्न सारे यूरोप में मनाया गया था।

पोलैंड आज भी करता राजा की आज्ञा का पालन

वियना के युद्ध को जीतने के बाद किंग जॉन की को पाक की तरफ से डिफेंडर ऑफ फेथ के नाम से भी नवाजा गया। सिटी के सम्मान में ऑस्ट्रियन ने एक चर्च भी बनाया जो आज भी वियना के उत्तर में मौजूद है। अपने धर्म और देश की रक्षा के लिए आज से 350 साल पहले पोलैंड के नेतृत्व में यूरोपीय देशों ने युद्ध लड़ा था। इस्लाम का परचम लिए विस्तार कर रहे ऑटोमन साम्राज्य को रोका था। किंग जॉन की को आज भी याद किया जा रहा है कि जो विजन वो पौलेंड को देकर गए थे वो आज भी उस पर कायम है। यही कारण है कि पोलैंड ने कट्टरपंथियों को पनाह नहीं दी और वो आज वहां हमले नहीं होने दे रहा है। जो देश वियेना के युद्ध को भूल गए वो भुगत रहे हैं। 

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