पवन सिंह
आएगा वही क्योंकि, वही, “वह है” जो रस्सी को भी सांप की तरह दिखा सकता है। आएगा वही, क्योंकि उसे अंधों के शहर में आईने बेचने का हुनर पता है, उसे यह भी पता है कि अफीम से भी बड़ा नशा उसके पास है….. धर्म का और उन्माद का,
संस्कृति के अभिमंत्रित जल से वो पूरे देश में छींटे मारने की कला जानता है।
वह चंद्रकांता का अय्यार है और वह शातिर है सारे तिलिस्म गढ़ने में, इसलिए वह फिर से आएगा। वह इस लिए भी आएगा क्योंकि “झूठ को पंख” लगाकर वह बेचता है। वह शब्दों का बाज़ीगर है इस लिए वही आएगा। वह इसलिए भी आएगा क्योंकि वह किलविशहै…कालनेमि है…उसे अपने बुने हुए अंधेरे के कायम रहने पर पूरा विश्वास है।
वह इस लिए बार-बार आएगा क्योंकि वह जहर बनकर लोगों के दिमाग में घर कर चुका है। वह आएगा क्योंकि लोगों की आवाजें अब दालान तक भी नहीं आतीं। वह फिर से आएगा क्योंकि दिमाग़ की खिड़कियों की सिटकिनियां चढ़ा कर लोग बैठ चुके हैं। ताजी बयार अब किसी को नहीं चाहिए। रौशनी भी नहीं चाहिए।
विवेक शून्यता ही तो भरना चाहता था वह, वह अब कामयाब है। उसे पता है कि हिप्नोटाइज अर्थात् वशीकरण या वशीकृत लोग अब उसके पीछे हैं। वह अट्टाहस करता है और नीरो के मानिंद बांसुरी बजाता है। वह बार-बार आएगा क्योंकि वह वर्तमान का सर्वशक्तिमान छलिया है।
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