त्रिफला जी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी (Atal Bihari Bajpai) को भी कवि की श्रेणी में नहीं रखते। बतौर त्रिफला, अटल जी विद्वान्, विचारवान और सुधी राजनीतिज्ञ तो हो सकते हैं, किन्तु कवि नहीं। हां, वह कविता लिखने का प्रयास करते थे। इसी तरह यह फक्क्ड़ कवि अनेक नामचीन कवियों को कविकुल से बहिष्कृत करता है। कविता साहित्य की अतिगूढ़ तकनीकी विधा है। छंद सूत्र ‘यमातराजभानसलगा’ के अंतर्गत रची गई अकथनीय पंक्तियां ही कविता कहलाती हैं। इसके अतिरिक्त जो कुछ भी लिखा, छापा, पढ़ा-पढ़ाया और सुना-सुनाया जा रहा है, वह कविता से इतर है। यह कहना है महाकवि त्रिफला का।
महाकवि त्रिफला गत दिनों यूपीकेएनएन से मुखातिब थे। वह साहित्य, सत्ता और समाज के वर्तमान स्वरुप से वह व्यथित हैं। कविसम्मेलनों और मुशायरों में पढ़ी जा रही कविता को त्रिफला जी गाना और प्रहसन कहते हैं। ऐसे लोगों को ही सरकार पुरस्कार दे रही है। बतौर त्रिफला जब साहित्य विकृत होगा तो समाज और सत्ता में भटकाव आना स्वाभाविक है।(Atal Bihari Bajpai)
देश की हिंदी पट्टी में महाकवि त्रिफला बेहद जाना-पहचाना नाम है। नेत्रहीन, डगमगाते कदम, शरीर में शरारत, श्रृंगार, हास्य व ओज मिश्रित बाणी और पहली ही भेंट में अपनाइयत की अनुभूति करा देने वाले इस फक्कड़ कवि की जिह्वा पर सरस्वती विराजती हैं।(Atal Bihari Bajpai)
जौनपुर के एक छोटे से गांव के एक गरीब परिवार में जन्मे त्रिफला का असली नाम घनश्याम पांडे था। जन्मजात काव्य प्रतिभा ने जल्द ही घनश्याम से त्रिफला बना दिया। मस्ती में तो त्रिफला जी कविता के अंदाज में ही घंटों बतियाते रहते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के अधिकांश लोग त्रिफला जी को जानते हैं। इलाहबाद विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में भी त्रिफला जी की अलग पहचान थी।(Atal Bihari Bajpai)