Up Kiran, Digital Desk: अक्सर हम छोटी-मोटी तकलीफ को टालते रहते हैं। कान में हल्का दर्द हुआ तो सोचते हैं खुद ही ठीक हो जाएगा। कभी सुनाई कम देने लगा तो उम्र का असर मानकर चुप हो जाते हैं। लेकिन कई बार यही लापरवाही बड़ी मुसीबत खड़ी कर देती है। गुड़गांव के जाने-माने ईएनटी विशेषज्ञ डॉक्टर सिद्धार्थ कहते हैं कि ज्यादातर मरीज तब अस्पताल पहुंचते हैं जब कान का पर्दा पूरी तरह फट चुका होता है। आइए आज समझते हैं कि आखिर ये पर्दा फटता क्यों है और अगर ऐसा हो जाए तो तुरंत क्या करना चाहिए।
कान का पर्दा असल में है क्या?
साधारण भाषा में कहें तो कान का पर्दा एक बहुत पतली झिल्ली है जो बाहर की हवा और भीतरी कान के नाजुक हिस्से को अलग रखती है। इसे मेडिकल भाषा में टिम्पेनिक मेम्ब्रेन कहते हैं। इसका काम सिर्फ आवाज को अंदर पहुंचाना ही नहीं बल्कि कीटाणुओं को बीच में ही रोकना भी है। अगर यह झिल्ली फट जाए तो सुनने की ताकत कम हो जाती है और संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
फटने के सबसे आम कारण
डॉक्टर बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में ये तीन वजहें सामने आती हैं
- संक्रमण का हमला बच्चों में बार-बार जुकाम या गले का इंफेक्शन कान तक पहुंच जाता है। कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता की वजह से उनके पर्दे पर ज्यादा दबाव पड़ता है और वो फट जाता है। बड़े लोगों में भी मध्य कान का पुराना संक्रमण अचानक पर्दा फटने का कारण बन सकता है।
- तेज आवाज का झटका पटाखे फूटना या कोई भारी धमाका। कभी-कभी संगीत कॉन्सर्ट में बहुत तेज स्पीकर के सामने खड़े रहने से भी पर्दा एक झटके में फट जाता है। इसे एक्यूस्टिक ट्रॉमा कहते हैं।
- चोट या गलत सफाई सबसे आम वजह जो खुद हम ही बनाते हैं। माचिस की तीली से कान खुजलाना, ईयरबड को बहुत अंदर तक घुसेड़ना या फिर किसी झप्पी-हादसे में कान पर सीधी चोट लगना। ये सब पर्दे के लिए खतरनाक साबित होते हैं।
कैसे पता चलेगा कि पर्दा सच में फट गया?
शुरुआत में तेज दर्द होता है। कई बार कान से पतला पानी या खून भी निकलने लगता है। सुनाई कम पड़ने लगता है और कभी-कभी चक्कर भी आने शुरू हो जाते हैं। कुछ मरीजों को कान के अंदर गर्माहट या भारीपन का अहसास होता है। ये सारे लक्षण मिलकर चेतावनी देते हैं कि अब डॉक्टर के पास जाना जरूरी हो गया है।
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