
संस्कृत के आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी हैं। उनका जन्म आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। हर वर्ष आश्विन पूर्णिमा के दिन वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। इस दिन मंदिरों ने महर्षि वाल्मीकि की विशेष पूजा की जाती है और जगत के कल्याण की कामना की जाती है। महर्षि वाल्मीकि ने सबसे पहले संस्कृत के श्लोक की रचना की थी और उन्होंने संस्कृत रामायण महाकाव्य की भी रचना की थी, इस वजह से उनको संस्कृत के आदिकवि की उपाधि प्राप्त है। तो आइए जानते हैं कि इस वर्ष वाल्मीकि जयंती कब है, पूजा का मुहूर्त क्या है…
वाल्मीकि जयंती तिथि-
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 19 अक्टूबर दिन मंगलवार को शाम 07 बजकर 03 मिनट पर हो रहा है। इस तिथि का समापन 20 अक्टूबर दिन बुधवार को रात 08 बजकर 26 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार, इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 20 अक्टूबर दिन बुधवार को मनाई जाएगी।
मुहूर्त-
20 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती के दिन राहुकाल दोपहर 12 बजकर 06 मिनट से दोपहर 01 बजकर 31 मिनट तक है। ऐसे में आपको पूजा के लिए राहुकाल का ध्यान रखें। राहुकाल में पूजा करना वर्जित होता है। इस दिन अमृत काल दिन में 11 बजकर 27 मिनट से दोपहर 01 बजकर 10 मिनट तक है, वहीं विजय मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 59 मिनट से दोपहर 02 बजकर 45 मिनट तक है।
महत्व-
महर्षि वाल्मीकि संस्कृत के आदिकवि यानी प्रथम कवि हैं। उन्होंने संस्कृत में महाकाव्य रामायण की रचना की, जिसमें 24000 श्लोक हैं। संस्कृत रामायण को वाल्मीकि रामायण भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार महर्षि वाल्मीकि नदी के किनारे क्रौंच पक्षी के जोड़े को प्रेमालाप करते देख रहे थे, तभी एक बहेलिए ने नर क्रौंच पक्षी को मार दिया, जिससे मादा पक्षी विलाप करने लगी।यह देखकर वाल्मीकि जी बहुत दुखी हुए। क्रोधवश उनके मुख से बहेलिए के लिए कुछ शब्द निकले, जो संस्कृत में थे।
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥
इसका अर्थ है कि तुमने प्रेमालाप करते इस क्रौंच पक्षी की हत्या की है। तुझे कभी प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी, तुझे भी वियोग झेलना होगा। एक तरह से वाल्मीकि जी ने उसे श्राप दिया। उसके बाद ही वाल्मीकि जी ने संस्कृत रामायण की रचना की।
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