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Up Kiran, Digital Desk: अफगानिस्तान ने हाल के दिनों में एक विनाशकारी भूकंप का सामना किया, जिसने हजारों लोगों की जान ले ली। भूकंप के मलबे में दबे कई लोग जिंदा थे और मदद के इंतजार में थे, लेकिन तालिबान के सख्त रूढ़िवादी नियमों के चलते महिलाओं को बचाने में राहतकर्मियों को भारी रुकावटें आईं। इस खबर में हम इस दुखद घटना और अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति पर गहराई से चर्चा करेंगे।

1. तालिबानी रूढ़िवादिता ने बढ़ाई महिलाओं की मुसीबत

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार ने महिलाओं के अधिकारों को लेकर सख्त पाबंदियां लगाई हैं। ये पाबंदियां भूकंप जैसे आपातकालीन परिस्थितियों में भी राहत कार्यों को प्रभावित करती हैं।
कुनार प्रांत के आंदरलुकाक गांव की बीबी आयशा का मामला इस समस्या को बखूबी दर्शाता है। 36 घंटे तक मलबे में दबी आयशा खुद मदद के लिए हाथ हिला-हिला कर आवाज लगाती रहीं, लेकिन तालिबानी फरमान के चलते पुरुष बचावकर्मियों ने उन्हें छूने से इनकार कर दिया। महिलाओं की मदद करने के लिए महिला बचावकर्मियों की संख्या भी बहुत कम है, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई।

यहाँ तक कि महिलाएं जिनकी सांसें चल रही थीं और जिनमें अभी भी बचने की पूरी उम्मीद थी, उन्हें अनदेखा किया गया क्योंकि उन्हें छूना एक सामाजिक और धार्मिक अपराध माना जाता है।

2. बच्चों और महिलाओं के प्रति राहत कार्यों की भेदभावपूर्ण नीति

भूकंप के बाद राहत कार्यों में बचाव दल ने पुरुषों और किशोरों को तो निकाल लिया, लेकिन महिलाओं और लड़कियों को उनके हाल पर छोड़ दिया। कई बार तो ऐसा हुआ कि बच्चे भी इस भेदभाव का शिकार बने। राहत कार्यों में इस तरह का भेदभाव मानवता के खिलाफ है और इसे विश्व समुदाय द्वारा गंभीरता से देखना होगा।

तालिबान की यह नीति न केवल मानवीय दृष्टि से गलत है, बल्कि इससे अफगानिस्तान के सामाजिक और आर्थिक पुनर्निर्माण में भी बाधा आती है।

3. अफगानिस्तान में महिलाओं पर व्यापक पाबंदियां: एक निरंतर संघर्ष

तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान की महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लागू हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

शिक्षा: लड़कियों को छठवीं कक्षा के बाद पढ़ने की अनुमति नहीं है, जिससे उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है।

यात्रा: महिलाएं बिना पुरुष वारिस के कहीं यात्रा नहीं कर सकतीं।

रोजगार: कई क्षेत्रों में महिलाओं को काम करने से रोका जाता है।

सार्वजनिक जीवन: सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं का चेहरा ढकना अनिवार्य है, और राजनीति में उनकी भागीदारी पर पूरी तरह से रोक है।

इन प्रतिबंधों ने महिलाओं के जीवन को सीमित कर दिया है और उनके विकास की संभावनाओं को दबा दिया है। इस सख्त रूढ़िवादिता के कारण आपदाओं के समय भी महिलाओं को उचित मदद नहीं मिल पाती।

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