कर्नाटक चुनाव: 100 विधानसभा सीटों पर दलितों का प्रभाव, जानें किस पार्टी की ओर है झुकाव

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कर्नाटक चुनाव के दौरान दलितों को अपनी तरफ करना देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की प्राथमिकताओं में शामिल है। राज्य में दलितों की संख्या 20 प्रतिशत है और 100 सीटों को यह प्रभावित करते हैं। वहीं 36 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। लेकिन यदि पिछले कुछ सालों के ट्रेंड को देखा जाए तो दलित वोट बैंक किसी भी पार्टी की तरफ जा सकता है। इसकी एक वजह दलितों को दो हिस्सों में बांटना है। एक श्रेणी में मडीगास आते हैं तो दूसरी श्रेणी होलेयस की है।

 

जहां होलेयस और दूसरे दलित समूह कांग्रेस को वोट देते हैं क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे उनका नेतृत्व करते हैं वहीं मडीगास भाजपा के पक्ष में हैं। माना जाता है कि मडीगास नाराज हैं क्योंकि जस्टिस एजे सदाशिव कमिशन की आंतरिक आरक्षण रिपोर्ट को प्रदेश में लागू नहीं किया गया है। इसी वजह से मडिगास भाजपा का समर्थन करते हैं। वहीं इस समुदाय के कुछ लोग जेडीएस और बसपा में भी शामिल हुए हैं। सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) का कहना है कि अतीत में दलित समुदाय के 50 प्रतिशत वोट कांग्रेस को जाया करते थे। जबकि भाजपा के खाते में केवल 20 प्रतिशत वोट बैंक जाते थे।

2008 के विधानसभा में यह तस्वीर उस समय बदल गई जब आरक्षित 36 सीटों में से भाजपा ने 22 पर जीत दर्ज की। इसके बाद कांग्रेस फिर से दलितों को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही और 2013 के चुनाव में उसने 17 आरक्षित सीटों पर कब्जा किया। अब दलितों के वोट बैंक में कब्जा करना प्रदेश का नया ट्रेंड बन गया है। हर पार्टी उन्हें अपने पक्ष में करना चाहती है। आंतरिक आरक्षण पर जस्टिस सदाशिव कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य में आरक्षण सुविधाओं की पहुंच सभी तक करवाने के लिए राज्य के 101 दलितों को 4 वर्गों में बांट दिया जाए।

जिसके बाद 15 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति, 6 प्रतिशत तथाकथित अछूतों, 5 प्रतिशत दूसरे समुदाय को 3 प्रतिशत गैर अछूतों को और 1 प्रतिशत दूसरे अनुसूचित समूहों को दिया जाए। इस मामले पर एक दलित नेता ने कहा कि हम पिछले चार सालों से आंतरिक आरक्षण की रिपोर्ट को सरकार द्वारा लागू करने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन सिद्धारमैया की सरकार ने हमारी और दूसरे दलित समुदायों की विनती दरकिनार कर दी।

 
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