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लखनऊ। कांग्रेस आलाकमान के फैसले अक्सर चौंकाने वाले होते हैं। पिछले दिनों राहुल गांधी के रायबरेली लोकसभा सीट से नामांकन से सियासत के जानकारों को हैरत हुआ। बताते चलें कि चुनाव की घोषणा के बाद से ही राहुल गांधी और अमेठी को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म था। अंतिम दिन राहुल गांधी ने रायबरेली से और अमेठी से गांधी परिवार के नजदीकी किशोरी लाल शर्मा ने नामांकन करने से इन चर्चाओं को विराम मिल गया। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि राहुल अमेठी में स्मृति से डर कर रायबरेली भागे हैं। हालांकि जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी ने पैंतरा बदल कर बीजेपी की रणनीति को ही धरासाई कर दिया है।

कांग्रेस का कहना है कि किशोरी लाल शर्मा कांग्रेस के पुराने सिपाही हैं। बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी को हराने के लिए वही काफी हैं। उन्हें अमेठी की जनता गांधी परिवार के सदस्य की तरह ही लेती है। अब बीजेपी भले ही राहुल गांधी को अमेठी की जगह रायबरेली से चुनाव लड़ने  को लेकर कुछ भी कहे, लेकिन राहुल को रायबरेली से चुनाव लड़ाने के पीछे कांग्रेस की गूढ़ रणनीति बताई जा रही है।

दरअसल, सोनिया गांधी शुरू से चाहती थीं कि बतौर उत्तराधिकारी राहुल गांधी रायबरेली से ही चुनाव लड़ें। वह चाहती थीं कि रायबरेली की विरासत राहुल के पास रहे। लेकिन राहुल गांधी वायनाड छोड़ना नहीं चाहते थे। लेकिन प्रियंका के कहने पर राहुल ने रायबरेली से लड़ने का फैसला किया। उनके रायबरेली से नामांकन के बाद कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत रायबरेली के आम लोगों में भी खासा उत्साह देखने को मिला।

रायबरेली में राहुल गांधी के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने दिनेश सिंह को उम्मीदवार बनाया है। दिनेश पिछ्ला चुनाव भी यहीं से लाडे थे।  शुक्रवार को उनके नामांकन के दौरान राहुल गांधी की तुलना में कम भीड़ नजर आई थी। नामांकन दाखिल करने के बाद  दिनेश सिंह ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा था कि आज कांग्रेस को राहुल गांधी की हार का डर है, इसलिए उनके नामांकन में सभी लोग आए हैं।  

सियासत के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस ने रायबरेली से राहुल गांधी को उतार कर बड़ी चाल चली है। इस समय राहुल गांधी को देश में प्रधानमंत्री के रूप में भी देखा जा रहा है। वैसे भी रायबरेली गांधी परिवार का रिश्ता बेहद पुराना है। इंदिरा गाधी रायबरेली से सांसद रहते हुए देश की प्रधानमंत्री रही हैं। अब राहुल यहां से सांसद निर्वाचित होकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजेंगे।

गौरतलब है कि बीजेपी और संघ परिवार ने विगत दस सालों से राहुल गांधी को राजननीति में 'पप्पू' साबित करने के लिए बड़ा अभियान चलाया था। इसमें सैकड़ों करोड़ रूपये भी खर्च हुए। अब लगता है कि द्वेषवश राहुल को पप्पू पप्पू कहने वाले खुद ही पापु हो चुके हैं। बीजेपी के रणनीतिकारों को ये पता होना चाहिए कि राहुल गांधी ने पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक पूरे देश को मथ डाला है। देश में उनका कद इतना बढ़ चुका है कि शीर्ष बीजेपी नेता उनके सामने बौने साबित होने लगे हैं। राहुल ने ये साबित कर दिया है कि वो पढ़े लिखे होनहार नेता हैं। उनका मजाक उड़ाने वाले उनके सामने पसंगे भी नहीं हैं। पूरा देश उनकी बाते सुन रहा है।

दरअसल, राहुल गांधी के अमेठी के बजाय रायबरेली से चुनाव लड़ने के पीछे कांग्रेस की गूढ़ रणनीति है। इससे राहुल को अमेठी में घेरे रखने की बीजेपी की रणनीति फुस्स हो गयी है। कांग्रेस की रणनीति है कि अमेठी में स्मृति को सेनापति के प्यादे से हरवाया जाए। अब कांग्रेस की रणनीति कारगर साबित होती नजर आ रही है।
 

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