चीन से ऐसे ही आंख मिलानी थी क्या?

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इस वक्त पूरे देश में अजीब से हालात हैं । “भक्ति भाव” से इतर सोचिए तो हमने चीन की आंख में आंख डालने की जो बात चुनाव से पहले अभिभूत होकर सुनी थी, उसका सच यह है कि चीन भारत से चार चार हाथ चढ़कर बात कर रहा है। हाल ही में भारत के विदेश सचिव का एक गंभीर बयान आया लेकिन वह मीडिया में जगह नहीं बना सका। उन्होंने कहा कि चीन ने भारत में निवेश का वायदा किया, लेकिन उसने भारत में निवेश नहीं किया। अपितु अपना सामान भारत में डंप करने लगा। चीनी कंपनियाँ भारत आतीं तो भारत में रोजगार मिलता लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

बकौल विदेश सचिव चीन ने निवेश के नाम पर निर्यात किया। यह जानकारी पिछले दिनों संसदीय दल को दी गई। वर्ष 2016 में व्यापार घाटा 47.68 अरब अमेरिकी डाॅलर था, लेकिन 2017 में यह बढ़कर 50 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा। क्योंकि इस दिशा में कभी कोई गंभीर आकलन किया ही नहीं गया। चीन का भारत में निवेश करीब 5 अरब डाॅलर का है। यानी व्यापार घाटे का पलडा चीन के पक्ष में है। यहां से निकलकर आते हैं चीनी व रूस के नजदीक होते संबंधों पर। पिछले हफ्ते ही चीन-रूस का संयुक्त सैन्य अभ्यास खत्म हुआ। जब यह अभ्यास चल रहा था उस समय चीनी राष्ट्रपति भी व्लादिवोस्तोक में आयोजित पूर्वी आर्थिक मंच की बैठक में थे। पुतिन के साथ उनकी लंबी-चौड़ी बात हुई। चीनी ने रूस में जबरदस्त निवेश किया है और यहां यह भी बताना जरूरी है कि चीन रूस से सबसे बड़ा तेल आयातक देश बन चुका है।

गैस के मामले में भी चीन रूस पर ही भरोसा कर चुका है। चीनी रूसी सेना से जिस तरह के युद्ध के पैतरे सीख रहा है वह भारत के लिए खतरे की बड़ी घंटी है। मास्को-दिल्ली के बीच रिश्तों में वह मिठास नहीं बची है। इसका नतीजा यह हुआ कि रूस अफगानिस्तान के मामले में तेजी से अपना रूख बदल रहा है। हद तो यह हो गई है कि चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना “बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव” को भारत चुनौती न दे, यह भी रूस ने कह दिया!!!!….बाकी चुनौतियां तो चीन खड़ा ही कर चुका है। नेपाल को भी चीन भारत से लगभग काट चुका है, वह बात अलग है कि हर चीज को इवेंट कंपनी के नजरिए से देखने वाले मोदी….नेपाल के मामले में कोई नया शिगूफा छोड़ दें।

चीन की आंख में आंख डालने वाले “इवेंट बादशाह” की हालत यह है कि कुछ महीने पहले नई दिल्ली से ताइवान एक अंतर्राष्ट्रीय उड़ान शुरू की गई । इस फ्लाइट पर लिखा था ताइपे एअरवेज ….24 घंटे भी नहीं बीते थे कि चीन ने इसका नाम बदलवाकर चीनी-ताइपे एअरवेज करवा दिया। जिस डोकलाॅम की बात आज की जा रही है उसका सच यह है कि डोकलाॅम से सटे इलाके में चीन ने एक साल के भीतर जो इन्फ्रास्ट्रैक्चर तैयार कर लिया है, वह अभूतपूर्व है।……..मीडिया की हालत यह है कि वह गंभीर मुद्दों से पूरी तरह से पल्ला झाड चुका है क्योंकि या तो उनके मालिकान बिक चुके हैं या मालिकानों ने अपने इतर धंधों को सुरक्षित रखने के लिए हाथ मिला लिया है। विपक्ष की हालत गजब की है। बे-सिर पैर के मुद्दों मे उलझा हुआ है।

लुधियाना का साइकिल उद्योग जो पहले से ही चीन की मार से कराह रहा था उसे gst के तमाम तरह के स्लैबों ने तबाह कर दिया है।……देश को कोई सरकार नहीं बल्कि कोई इवेंट कंपनी चला रही है…….चलते-चलते “पत्रिका न्यूज” को बधाई जिसने यह दिखाने-लिखने का साहस किया कि मोदी अपने जन्मदिवस पर जब बनारस में एक सभा को संबोधित करने उठे तो उनके भाषण के बीच से लोग उठकर जाने लगे। मोदी को चार बार यह अपील करनी पड़ी कि आप लोग बैठिए……मैं कहना केवल इतना चाहता हूँ कि देश एक अजीब से दौर से गुजर रहा है। इस देश को हमेशा लोगों ने यानी जनता ने बचाया है….वही कुछ हल भी निकालेगी। वैसे भी लोग कहते ही आए हैं ….इस देश को भगवान चला रहा है…..लेखक पवन सिंह वरिष्ठ पत्रकार क संक्षिप्त परिचय-
दैनिक 1989 में नवजीवन से पत्रकारिता की शुरुआत की। दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, हिन्दुस्तान व आऊटलुक में वरिष्ठ पदों पर कार्य किया। 29 पुस्तकें लिखीं जिसमें से चार पुस्तकें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरूस्कृत हुईं। भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा सिक्किम पर अध्ययन हेतु फैलोशिप मिली। माॅरीशस में भारतीय संस्कृति के अध्ययन-अध्यापन हेतु गये। लखनऊ विश्वविद्यालय के पर्यटन अध्ययन संस्थान द्वारा नेपाल व भारत के सांस्कृतिक रिश्तों पर अध्ययन के लिए उन्हें नेपाल भेजा गया। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन का कार्य करते हैं। हाल ही में प्रकाशित किताब “पत्रकारिता की शवयात्रा ” काफी चर्चित रही है।

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