लखनऊ।। चुनाव आयोग द्वारा शुक्रवार को गोरखपुर की लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव
की तारीखों का ऐलान के बाद सीएम योगी की सीट को लेकर गहमा-गहमी शुरू हो गयी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद खाली हुई इस हाईप्रोफाइल सीट पर मतदान
11 मार्च को होगा और नतीजे 14 मार्च को आएंगे। मुख्यमंत्री द्वारा खाली की गई इस सीट
पर विपक्ष की भी नजर है।
ऐसे में समाजवादी पार्टी भी अपना दबदबा कायम करने के लिये इन दो बड़े चेहरों पर दांव
लगा सकती है। सूत्रों के मुताबिक डा. संजय निषाद और दिनेश लाल यादव (निरहुआ) में
से किसी एक पर अपना दांव अजमा सकती है।
हालांकि गोरखपुर सीट पर गोरक्षनाथ पीठ का दबदबा रहा है, लेकिन अभी तक बीजेपी
द्वारा प्रत्याशी घोषित न किए जाने से सस्पेंस बरकरार है। वहीं विपक्ष भी असमंजस में
है कि साझा उम्मीदवार उतारा जाए कि अलग-अलग। लिहाजा कहा का रहा है कि बारात
तो तैयार है लेकिन, दूल्हा नदारद है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक योगीजी के बाद खाली हुई यह सीट अब हाईप्रोफाइल हो
चुकी है। लिहाजा बीजेपी इस सीट से बड़ी जीत दर्ज करना चाहेगी। लिहाजा कैंडिडेट
भी बड़ा चेहरा ही होगा।
विपक्ष एकजुट नहीं
गोरखपुर और पुलपुर लोकसभा सीटों के लिए विपक्ष में एक नहीं हो पाया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कह चुके हैं कि दोनों ही सीटों के लिए पार्टी तैयारियों में जुटी है। बसपा का कहना है कि उसका इतिहास रहा है कि वह उपचुनाव में उम्मीदवार खड़े नहीं करती। ऐसे में अगर कांग्रेस के नेतृत्व में साझा उम्मीदवार खड़ा होता है तो वह उसे समर्थन कर सकती है। कांग्रेस की भी स्थिति साफ़ नहीं है। वह उम्मीदवार खड़ा करेगी या फिर साझा उम्मीदवार को समर्थन यह वक्त ही बताएगा। लेकिन यह जरुर है कि बिखरे विपक्ष से बीजेपी की राह आसान होगी।
गोरक्षनाथ पीठ का रहा है दबदबा
1952 में पहली बार गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए चुनाव हुआ और कांग्रेस ने जीत दर्ज की। इसके बाद गोरक्षनाथ पीठ के महंत दिग्विजयनाथ 1967 निर्दलीय चुनाव जीता। उसके बाद 1970 में योगी आदित्यनाथ के गुरु अवैद्यनाथ ने निर्दलीय जीत दर्ज की। 1971 से 1989 के बीच एक बार भारतीय लोकदल तो कांग्रेस का इस सीट पर कब्ज़ा रहा। लेकिन 1989 के बाद से सीट पर गोरक्षपीठ का कब्ज़ा रहा। महंत अवैद्यनाथ 1998 तक सांसद रहे। उनके बाद 1998 से लगातार पांच बार योगी आदित्यनाथ का कब्ज़ा रहा।